नमकका मोल गरीब राजपूत खेतसिंह

मारवाड़ में उस वर्ष सूखा पड़ा था,खेतों में पूरे वर्ष खाने लायक बाजरा तक पैदा नहीं हुआ। ऐसे में जोधपुर से कुछ कोस दूरी पर एक ढाणी में रहने वाले गरीब राजपूत #खेतसिंह ने लकड़ियाँ इक्कठा कर उन्हें जोधपुर शहर आकर बेचना शुरू कर दिया, ताकि लकड़ी बेचने से हुई आमदनी से अपने घर का खर्च चलाया जा सके। नौजवान खेतसिंह अपनी ढाणी में बूढी मां व अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ रहता था उसका ब्याह हुए अभी कोई दो एक महीने ही हुए होंगे |
उस दिन खेतसिंह ने लकड़ियाँ इक्कठा करने में थोड़ी करदी वह लकड़ियाँ अपने ऊंट पर लादकर जब जोधपुर शहर पहुंचा तब तक साँझ ढल चुकी थी। इसलिए उसे दूसरे दिन लकड़ियाँ बेचने हेतु शहर में रुकना था सो वह रात गुजारने हेतु निमाज के #ठाकुरसुल्तानसिंहजी की हवेली पहुँच गया | उन दिनों #ठाकुरसुल्तानसिंह हवेली में ठहरे थे,उनसे मिलने आने वालों के लिए उनका रसोड़ा चोबिसों घंटे खुला रहता था | #खेतसिंह ने अपने ऊंट को हवेली की चाहरदीवारी में एक जगह बाँध उसे चारा डाल दिया। वह खाने को बाजरे की रोटियां तो साथ लाया ही था और थोड़ी सी दाल ठाकुर साहब के रसोड़े से लेकर खाना खा वहीँ अपने ऊंट के पास जमीन पर ही लेट कर सो गया |
सुबह उठकर जैसे ही वह दैनिक कार्यों से निवृत हुआ तभी उसे एक ऊँचा स्वर सुनाई दिया –
” यहाँ उपस्थित सभी लोगों को ठाकुर साहब ने बुलाया है। अत : सभी अतिशीघ्र उनके पास पहुंचे |”

खेतसिंह भी ऊंट को वहीँ छोड़ अपनी टूटी म्यान वाली तलवार सहित सभी लोगों के साथ ठाकुर साहब के सम्मुख पहुँच गया |

ठाकुर साहब ने सभी को संबोधित कर कहा – ” कुछ लोगों ने दरबार (#महाराजामानसिंह) के कान मेरे विरुद्ध भर दिए हैं और इसी वजह से दरबार मुझे मरवाने या बंदी बनाने की ताक में थे | आज उन्होंने अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु मेरी हवेली को चारों से तरफ से सैनिकों से घिरवा दिया और जोधपुर किले की तोपों का मुंह भी मेरे हवेली की ओर मोड़ दिया है | पर मैं भी एक राजपूत हूँ, कुत्ते की तरह पकड़े जाने की बजाय युद्ध कर वीरतापूर्वक मरना पसंद करूँगा | आज अवसर आ गया है कि मैं समरांगण में अपनी तलवार का पानी दिखा सकूँ | आप लोगों में जो मेरा साथ देना चाहें वें यहाँ मेरे साथ ठहर जाएँ बाकी के लोग ख़ुशी से अपने अपने घर जा सकते हैं |”
कहते ही कई लोग वहां से खिसकने शुरू हुए तभी आगे बढ़कर खेतसिंह ने कहा -” मैं दूंगा आपका साथ |”
“तुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं पहचानता और तुम क्यों मेरे साथ अपने प्राण गंवाने पर तुले हो | जाओ और अपने बाल बच्चों का ध्यान रखो |”
“मैं एक राजपूत हूँ और मैंने कल रात आपके रसोड़े से लेकर थोड़ी दाल खाई थी उसमे आपका नमक था इसलिए मैं उस नमक का मोल चुकाने आपका साथ दूंगा |”
” अच्छा तो क्या मेरा चुट्टी भर नमक इतना मंहगा है जो तुम उसके बदले अपना सिर देने को तैयार हो गए ?” ठाकुर सुल्तानसिंह बोले |
” ठाकुर साहब ! नमक हमेशा राजपूतों के सिर से महंगा होता है |”
“और सिर ? “
” वह तो सदैव सस्ता होता है इसीलिए तो राजपूतों के सिर की हर ओर मांग रहती है और इसी वजह से राजपूत की इज्जत है और रहेगी | जिस दिन राजपूत का सिर महंगा हो जायेगा उस दिन उसकी कोई इज्जत और जरुरत नहीं रह जाएगी,वह निरुपयोगी व भार स्वरुप बन जायेगा |”
ठाकुर साहब ने उसके घर के बारे में जानकारी ली व उसे समझाया उसकी बूढी मां व उसकी पत्नी की देखभाल कौन करेगा | इसलिए नादानी छोड़ और अपने घर के लिए निकल ले | पर #खेतसिंह ने तो साफ कह दिया कि -उसकी मां व पत्नी की चिंता ईश्वर करेगा और ये साधारण सी बात हर राजपूत को जानना चाहिये |
ठाकुर साहब ने उसे रुकने की आज्ञा नहीं दी, पर वह तो अपनी टूटी म्यान से तलवार निकाल हाथ में ले महल से उतर गया -” मुझे मेरा कर्तव्य आज्ञा दे रहा ठाकुर साहब ! इसलिए आप मुझे धर्म संकट में मत डालिए ,अपना कर्तव्य पूरा करने दीजिये |
थोड़ी ही देर में संवत् 1876 की आषाढ़ बड़ी 1 को जोधपुर के किले से तोपों व बंदूकों से हवेली पर गोलीबारी शुरू हो गयी दोनों ओर से योद्धा भिड़ गए और कट कट कर भूमि पर गिरने लगे | तभी वहां उपस्थित लोगों व सैनिकों ने देखा एक फटे पुराने कपड़े पहने एक युवक एक पुरानी सी तलवार ले जोधपुर की सेना पर टूट पड़ा और उसी तलवार के जौहर ने कोई पचासों सैनिकों को गाजर मूली की भांति काट कर चारों ओर हाहाकार मचा दिया | तभी एक बन्दूक की गोली उसके हाथ में लगी, उसने तलवार दूसरे हाथ में थामी और मारकाट मचाता रहा। आखिर उसका शरीर गोलियों से छलनी कर दिया गया पर उसकी तलवार तो अभी तक नमक का मोल चुकाने में तन्मय थी |
आखिर एक गोली उसके सिर में लगी और वह युद्धभूमि में धराशायी हो गया | शायद अब नमक का मूल्य चुक गया था |
धन्य हो #खेतसिंह तुम,जिसने एक चुटी नमक के लिए इतनी बड़ी कीमत चुका दी | हमारे आगे तो जिस दिन अपनी मातृभूमि के लिए नमक का मोल चुकाने का वक्त आएगा तब हम धरने देकर, मशाल जुलुस निकालकर और दुश्मन देश के खिलाफ एक सख्त वक्तव्य जारी कर अपने कर्तव्य की ईतिश्री कर लेंगे | क्योंकि हमें तो हमारे देश के कर्ता धर्ताओं ने यही सिखाया है |और हाँ, अब हमारे सिर भी महंगे हो गए है इसीलिए शायद उनकी कहीं मांग नहीं रही |



There was a drought in Marwar that year, even edible millet did not grow in the fields for the whole year. In such a situation, a poor Rajput #Khet Singh, living in a Dhani a few miles away from Jodhpur, started collecting wood and selling it after coming to Jodhpur city, so that the expenses of his house could be run with the income earned from selling wood. Young Khet Singh used to live in his dhani with his old mother and his newly married wife, it must have been a month or two since they got married. That day, Khet Singh did little to collect wood, by the time it reached the city of Jodhpur by loading the wood on his camel, evening had set in. That’s why he had to stay in the city to sell wood the next day, so he reached the mansion of #ThakurSultanSinghji of Nimaj to spend the night. In those days #ThakurSultanSingh stayed in the haveli, his kitchen was open round the clock for those who came to meet him. #Khet Singh tied his camel to a place in the boundary wall of the haveli and fed it. He had brought millet rotis with him to eat and after taking some pulses from Thakur Saheb’s kitchen, he slept lying on the ground near his camel. Waking up in the morning as soon as he retired from his daily work, he heard a loud voice – “Thakur Sahib has called all the people present here. So everyone reached him as soon as possible.” Khet Singh also left the camel there and reached in front of Thakur Saheb along with all the people along with his broken scabbard sword.

ठाकुर साहब ने सभी को संबोधित कर कहा – ” कुछ लोगों ने दरबार (#महाराजामानसिंह) के कान मेरे विरुद्ध भर दिए हैं और इसी वजह से दरबार मुझे मरवाने या बंदी बनाने की ताक में थे | आज उन्होंने अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु मेरी हवेली को चारों से तरफ से सैनिकों से घिरवा दिया और जोधपुर किले की तोपों का मुंह भी मेरे हवेली की ओर मोड़ दिया है | पर मैं भी एक राजपूत हूँ, कुत्ते की तरह पकड़े जाने की बजाय युद्ध कर वीरतापूर्वक मरना पसंद करूँगा | आज अवसर आ गया है कि मैं समरांगण में अपनी तलवार का पानी दिखा सकूँ | आप लोगों में जो मेरा साथ देना चाहें वें यहाँ मेरे साथ ठहर जाएँ बाकी के लोग ख़ुशी से अपने अपने घर जा सकते हैं |” कहते ही कई लोग वहां से खिसकने शुरू हुए तभी आगे बढ़कर खेतसिंह ने कहा -” मैं दूंगा आपका साथ |” “तुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं पहचानता और तुम क्यों मेरे साथ अपने प्राण गंवाने पर तुले हो | जाओ और अपने बाल बच्चों का ध्यान रखो |” “मैं एक राजपूत हूँ और मैंने कल रात आपके रसोड़े से लेकर थोड़ी दाल खाई थी उसमे आपका नमक था इसलिए मैं उस नमक का मोल चुकाने आपका साथ दूंगा |” ” अच्छा तो क्या मेरा चुट्टी भर नमक इतना मंहगा है जो तुम उसके बदले अपना सिर देने को तैयार हो गए ?” ठाकुर सुल्तानसिंह बोले | ” ठाकुर साहब ! नमक हमेशा राजपूतों के सिर से महंगा होता है |” “और सिर ? ” ” वह तो सदैव सस्ता होता है इसीलिए तो राजपूतों के सिर की हर ओर मांग रहती है और इसी वजह से राजपूत की इज्जत है और रहेगी | जिस दिन राजपूत का सिर महंगा हो जायेगा उस दिन उसकी कोई इज्जत और जरुरत नहीं रह जाएगी,वह निरुपयोगी व भार स्वरुप बन जायेगा |” ठाकुर साहब ने उसके घर के बारे में जानकारी ली व उसे समझाया उसकी बूढी मां व उसकी पत्नी की देखभाल कौन करेगा | इसलिए नादानी छोड़ और अपने घर के लिए निकल ले | पर #खेतसिंह ने तो साफ कह दिया कि -उसकी मां व पत्नी की चिंता ईश्वर करेगा और ये साधारण सी बात हर राजपूत को जानना चाहिये | ठाकुर साहब ने उसे रुकने की आज्ञा नहीं दी, पर वह तो अपनी टूटी म्यान से तलवार निकाल हाथ में ले महल से उतर गया -” मुझे मेरा कर्तव्य आज्ञा दे रहा ठाकुर साहब ! इसलिए आप मुझे धर्म संकट में मत डालिए ,अपना कर्तव्य पूरा करने दीजिये | थोड़ी ही देर में संवत् 1876 की आषाढ़ बड़ी 1 को जोधपुर के किले से तोपों व बंदूकों से हवेली पर गोलीबारी शुरू हो गयी दोनों ओर से योद्धा भिड़ गए और कट कट कर भूमि पर गिरने लगे | तभी वहां उपस्थित लोगों व सैनिकों ने देखा एक फटे पुराने कपड़े पहने एक युवक एक पुरानी सी तलवार ले जोधपुर की सेना पर टूट पड़ा और उसी तलवार के जौहर ने कोई पचासों सैनिकों को गाजर मूली की भांति काट कर चारों ओर हाहाकार मचा दिया | तभी एक बन्दूक की गोली उसके हाथ में लगी, उसने तलवार दूसरे हाथ में थामी और मारकाट मचाता रहा। आखिर उसका शरीर गोलियों से छलनी कर दिया गया पर उसकी तलवार तो अभी तक नमक का मोल चुकाने में तन्मय थी | आखिर एक गोली उसके सिर में लगी और वह युद्धभूमि में धराशायी हो गया | शायद अब नमक का मूल्य चुक गया था | धन्य हो #खेतसिंह तुम,जिसने एक चुटी नमक के लिए इतनी बड़ी कीमत चुका दी | हमारे आगे तो जिस दिन अपनी मातृभूमि के लिए नमक का मोल चुकाने का वक्त आएगा तब हम धरने देकर, मशाल जुलुस निकालकर और दुश्मन देश के खिलाफ एक सख्त वक्तव्य जारी कर अपने कर्तव्य की ईतिश्री कर लेंगे | क्योंकि हमें तो हमारे देश के कर्ता धर्ताओं ने यही सिखाया है |और हाँ, अब हमारे सिर भी महंगे हो गए है इसीलिए शायद उनकी कहीं मांग नहीं रही |

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