किताबी ज्ञान
एक गृहस्थका इकलौता बेटा मर गया। माँ बाप खूब रुदन करने लगे। वे किसी तरह शान्त ही नहीं होते थे। उनके यहाँ एक ज्ञानी साधु आये और पति-पत्नीको उपदेश देने लगे, ‘मृत्यु शरीरकी होती है। आत्मा तो अमर है। आत्माकी कभी मृत्यु नहीं होती। अतः अपने पुत्रकी मृत्युपर तुम्हारा शोक करना व्यर्थ है।’ ज्ञानकी बड़ी-बड़ी बातें करके ज्ञानीजी ‘चले गये।
थोड़े दिनों बाद उस गृहस्थने ज्ञानीजीको रोते हुए देखा। पता लगा कि उनकी बकरी मर गयी, इसलिये रो रहे हैं। गृहस्थको बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने साधुसे कहा – ‘महाराज ! आप मुझे उपदेश देते थे कि किसीकी मृत्युपर शोक नहीं करना चाहिये । मेरा तो इकलौता बेटा मरा था, फिर भी आप कहते थे कि रुदन करना उचित नहीं है। अब आप बकरीकी मृत्युपर ही रोने बैठ गये हैं।’
साधुने कहा- ‘लड़का तेरा था, किंतु बकरी मेरी है न! इसीलिये रो रहा हूँ।’
अन्यके इकलौते पुत्रकी मृत्युपर जो ज्ञान पैदा हुआ, वह स्वयंकी बकरीके मर जानेपर कहाँ विलुप्त हो गया ?
पुस्तकीय ज्ञान ज्यादा टिकता नहीं है। जीवनमें सदाचार, संयम एवं भक्तिके आनेपर जो ज्ञान स्वतः स्फुरित हो, वही शाश्वत ज्ञान है। ज्ञान कोई वाणी विलास नहीं है। ज्ञानका अनुभव करो, उसे जीवनमें उतारो, आचरणमें रूपान्तरित करो। ज्ञानका उपयोग परोपदेशे पाण्डित्यम्-अर्थात् दूसरोंको उपदेश देने में नहीं, स्वयंकी मुक्तिके लिये है। आचरणमें लाये बिना ज्ञानकी बातें केवल दम्भ हैं।
bookish knowledge
The only son of a householder died. Parents started crying a lot. They were not calm in any way. A wise monk came to their place and started preaching to the husband and wife, ‘Death is of the body. Soul is immortal. The soul never dies. Therefore it is futile for you to grieve over the death of your son. The wise man went away after talking big about knowledge.
After a few days, that householder saw the wise man crying. Got to know that his goat died, that’s why he is crying. The householder was very surprised. He said to the monk – ‘ Maharaj! You used to preach me that one should not grieve over someone’s death. My only son had died, yet you used to say that it is not right to cry. Now you have started crying over the death of the goat.’
The monk said – ‘The boy was yours, but the goat is mine isn’t it? That’s why I am crying.
The knowledge that was born on the death of another’s only son, where did it disappear when one’s own goat died?
Book knowledge does not last long. The knowledge that automatically springs up on the arrival of virtue, self-control and devotion in life, that is eternal knowledge. Knowledge is not a speech luxury. Experience knowledge, bring it into life, convert it into conduct. The use of knowledge is not for paropadesh pandityam-that is, for preaching to others, but for the salvation of oneself. Words of knowledge without putting them into practice are mere arrogance.