फूल खिलें और कोई मुसकराये
मैडम ब्लेवेट्स्की जब संसारकी यात्रापर निकली थीं तो अपने कन्धेपर एक झोला लटकाये रखती थीं। गाड़ी में बैठे-बैठे जब वे खुदी मिट्टी, नाले या तालाबका किनारा देखतीं, तो तुरंत झोलेसे कुछ निकालकर बाहर फेंक देतीं। भारत यात्राके दौरान भी उन्होंने यही क्रम जारी रखा। लोग जब उनसे पूछते कि आप क्या फेंक रही हैं, तो वे कहत—’ये फूलोंके बीज हैं। बादलोंके बरसनेपर कभी-न-कभी ये जरूर पौधे बनेंगे और उनपर सुन्दर रंग-बिरंगे फूल खिलेंगे।’
किसीने पूछा- ‘लेकिन मैडम, क्या आप फिर इसी रास्ते से गुजरेंगी ?”
उन्होंने कहा- ‘नहीं, पर इससे क्या, मैं यहाँ आऊँ या न आऊँ, मेरे लिये इतना ही बहुत है कि फूल खिलें और उन्हें देखकर किसीके चेहरेका तनाव दूर हो जाय, कोई आनन्दित हो जाय, क्योंकि मैंने सुना था – ‘भले लोग जिस रास्तेसे गुजरते हैं, उनके पीछे-पीछे प्रसन्नताके फूल महकते हैं। मेरे पास इसका एक ही उपाय था- ये फूलोंके बीज!’
flowers bloom and someone smiles
When Madame Blavatsky went on a world tour, she used to hang a bag on her shoulder. While sitting in the car, when she saw dug soil, the edge of a drain or a pond, she would immediately take something out of her bag and throw it out. He continued the same order during his visit to India. When people asked him what he was throwing, he would say, ‘These are the seeds of flowers. When it rains from the clouds, sooner or later these will definitely become plants and beautiful colorful flowers will bloom on them.’
Someone asked- ‘But madam, will you pass through this path again?
He said- ‘No, but what if I come here or not, it is enough for me that flowers bloom and seeing them the tension on someone’s face goes away, someone becomes happy, because I had heard -‘ They pass by on the way, the flowers of happiness smell behind them. I had only one solution for this – these flower seeds!’