महापुरुषोंकी उदारता

cemetery angel sculpture

सन् 1865 ई0 की बात है। बंगालमें भीषण अकाल पड़ा था। सभी लोग क्षुधासे व्याकुल होकर इधर-उधर भाग रहे थे। अन्न कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता था। इसी समय बर्दवानमें एक अत्यन्त दुर्बल दीन बालक ईश्वरचन्द्र विद्यासागरके पास आया। उसने उनसे एक पैसा माँगा। बालकका मुँह सूखकर पीला हो रहा था, पर उसके मुँहपर एक ज्योति-सी छिटक रही थी। ‘मान लो मैं तुम्हें चार पैसे दूँ तो ?’ विद्यासागरने

उससे पूछा।

‘महानुभाव! कृपया इस समय उपहास न करें, मैं बड़े कष्टमें हूँ’, बालक बोला।

‘नहीं, मैं उपहास या परिहास कुछ नहीं करता। बतलाओ, तुम चार पैसोंसे करोगे क्या ?’

‘दो पैसोंसे कुछ खानेकी चीज खरीदूँगा और दोपैसे अपनी माँको दूँगा । ‘

‘और मान लो, मैं तुम्हें दो आने दूँ तो ?’ विद्यासागरने पुन: पूछा ।

लड़केने अपना मुँह फेर लिया और वहाँसे चलने लगा; पर विद्यासागरने उसकी बाँह कहा – ‘बोलो’ । ली और

बालकके कपोलोंपर आँसू टपक पड़े, उसने कहा ‘चार पैसेसे तो मैं चावल या कोई भोजन खरीद लूँगा और अवशेष अपनी माताको दे दूँगा।’

‘और यदि तुम्हें चार आने दे दूँ?’

‘मैं दो आनोंका तो दो दिनोंके भोजनमें उपयोग कर लूँगा और दो आनेका आम खरीद लूँगा, जिन्हें चार आने में बेचकर अपनी माँके तथा अपने जीवनकी रक्षा करूँगा।’विद्यासागiरने उसे एक रुपया दे दिया और लड़का प्रसन्नताके मारे खिल उठा। वह दौड़कर आँखोंसे ओझल हो गया।

दो वर्षके बाद विद्यासागर पुनः बर्दवान गये। एक बली युवा पुरुष अपनी दूकानसे बाहर आया और उसने उन्हें सलाम किया।

‘श्रीमान्! क्या आप मेरी दूकानमें क्षणभर बैठनेकी दया करेंगे?’ युवा बोला ।

‘मैं तुम्हें बिलकुल पहचान नहीं पाता, भाई!’विद्यासागरने कहा।

लड़केकी आँखोंमें आँसू उमड़ आया। उसने दो वर्ष पूर्वकी सारी कथा ईश्वरचन्द्रसे सुनायी। अब वह फेरीवाला हो गया था और उसकी एक छोटी पूँजी तथा व्यवसाय हो गया था। विद्यासागरने उसे बड़ा प्रोत्साहन तथा आशीर्वाद दिया। वे बड़ी देरतक उसकी दूकानमें बैठे बातें करते रहे।

विद्यासागरकी उस फेरीवालेके साथ सुहृद्-जैसी गोष्ठी देख लोग आश्चर्य-सागरमें डूब गये। – जा0 श0

It is about the year 1865 AD. There was a severe famine in Bengal. Everyone was running hither and thither distraught with hunger. Food was nowhere to be seen. At the same time, a very weak poor child came to Ishwarchandra Vidyasagar in Burdwan. He asked them for a penny. The boy’s face was turning yellow with dryness, but a light was sprinkling on his face. ‘Suppose I give you four paise?’ Vidyasagarne
Asked him.
‘ Excellency! Please don’t scoff at this time, I am in great pain’, said the boy.
‘No, I do not scoff or make fun of anything. Tell me, what will you do with four paise?’
‘With two paise I will buy some food and with two paise I will give it to my mother. ,
‘And suppose, if I give you two annas?’ Vidyasagar asked again.
The boy turned his face and started walking from there; But Vidyasagar asked his arm – ‘Speak’. lee and
Tears rolled down the boy’s cheeks, he said ‘I will buy rice or some food with four paise and give the rest to my mother.’
‘And if I give you four annas?’
‘I will use two annas for food for two days and buy mangoes for two annas, which will be sold for four annas and save my mother and my life.’ Vidyasagar gave him a rupee and the boy beamed with happiness. He disappeared from sight by running.
After two years, Vidyasagar went to Burdwan again. A brawny young man came out of his shop and saluted them.
‘Sir! Will you be kind enough to sit in my shop for a moment?’ The youth spoke.
‘I don’t recognize you at all, brother!’ said Vidyasagar.
Tears welled up in the boy’s eyes. He told the whole story of two years ago to Ishwarchandra. Now he had become a hawker and had a small capital and business. Vidyasagar gave him great encouragement and blessings. They kept talking for a long time sitting in his shop.
Seeing Vidyasagar’s friendly gathering with that peddler, people were filled with astonishment. – Ja0 Sh0

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