परमात्म दर्शन

।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

जैसे ही मंजिल सामने आती है, बड़े आनंद से, बड़े पुलक से तन-प्राण भर जाता है। सब तरफ अनाहत का नाद गूंजने लगता है। ऐसा आनंद जिसे कभी जाना न था।

बिन घन परत फुहार। भीग- जाना होता है, रोआं-रोआं सरोबोर हो जाता है। हृदय की धड़कन-धड़कन में एक नया संगीत आ जाता है।

आंख खोलने पर रहस्य; आंख बंद करने पर रहस्य; जहां देखो वहां रहस्य। आश्चर्यचकित, आत्मविभोर, बस अवाक खड़े रह जाते हैं।

आनंद इसलिए हो रहा है कि स्वभाव के निकट पहुंच गए। और अगर यह आनंद स्वभाव के निकट पहुंचने से फलित हो रहा है तो यह जो भीतर उत्सव का वाद्य बजने लगा।

फूल खिलने लगे, और ये जो हजार-हजार राग-रागिनियां प्रकट हो गईं, और यह जो धीमा, शीतल प्रकाश चारों तरफ बरसने लगा, और ये जो करोड़-करोड़ दीए जल गए, यह सब शुभ है,

यही परमात्म दर्शन है, यही परमात्मा का द्वार है। इस द्वार पर तुम्हारा स्वागत है। बहुत दिन का भटका हुआ कोई वापस घर लौट आया है; सारा अस्तित्व ही स्वागत में वंदनवार सजा रहा है।

।। परमात्मा सब का मङ्गल करें ।।

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