2संत सूरदास जयंती

।। संत सूरदास जयंती ।।
(०६ मई२०२२)

भक्तिकाल के सगुण धारा के कवि सूरदास जी की जयंती पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। महाकवि सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। वो जन्म से ही अंधे थे किन्तु भगवान श्रीकृष्ण की लालीओं की जैसा वर्णन सूरदास ने किया है वो कोई नेत्र वाला भी नहीं कर सकता। उनके काव्य में कृष्ण के प्रति प्रेम और भाव इस तरह झलकते है जैसे उन्होंने स्वंय श्री कृष्ण की लीलाओं को देखा और महसूस किया हो। सूरदास को कृष्ण का परम भक्त माना जाता है। कृष्ण की हर लीला का वर्णंन उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से इस प्रकार किया है कि हर ओर कृष्ण ही कृष्ण दिखाई पड़ते हैं। गुरु वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग पर सूरदास ऐसे चले कि वे इस मार्ग के जहाज तक कहलाए। अपने गुरु की कृपा से भगवान श्रीकृष्ण की जो लीला सूरदास ने देखी उसे उनके शब्दों में चित्रित होते हुए हम आज देखते हैं।

महाकवि सूरदास के जन्म के विषय में तो काफी मतभेद है किन्तु फिर कई विद्वान उनका जन्म १४७८ ई० में मानते हैं। वैशाख शुक्ल पंचमी को सूरदास जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष सूरदास जयंती मई ०६ (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। सूरदास की महानता को सम्मान देते हुए भारतीय डाक विभाग ने उनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी किया था।

सूरदास का जीवन परिचय-

कवि सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नामक गांव में बहुत निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके तीन बड़े भाई थे। सूरदास जन्म से ही अंधे थे, किंतु भगवान ने उन्हें सगुन बताने की एक अद्भुत शक्ति से परिपूर्ण करके धरती पर भेजा था। मात्र छ: वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपने माता-पिता को अपनी सगुन बताने की विद्या से चकित कर दिया था। लेकिन उसके कुछ ही समय बाद वे घर छोड़कर अपने घर से चार कोस दूर एक गांव में जाकर तालाब के किनारे रहने लगे थे। सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इस उपलब्धि के साथ ही वे गायन विद्या में भी शुरू से ही प्रवीण थे। फिर अठराह साल की उम्र में उन्हें संसार से विरक्ति हो गई और सूरदास वह स्थान छोड़कर यमुना के किनारे (आगरा और मथुरा के बीच) गऊघाट पर आकर रहने लगे। गऊघाट पर उनकी भेंट गुरु वल्लभाचार्य से हुई। सूरदास गऊघाट पर अपने कई सेवकों के साथ रहते थे और वे सभी उन्हें ‘स्वामी’ कहकर संबोधित करते थे। वल्लभाचार्य ने उनकी सगुण भक्ति से प्रभावित होकर उनसे भेंट की और उन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया। वल्लभाचार्य ने उन्हें गोकुल में श्रीनाथ जी के मंदिर पर कीर्तनकार के रूप में नियुक्त किया और वे आजन्म वहीं रहे। वहां वे कृष्ण भक्ति में मग्न रहें। उस दौरान उन्होंने वल्लभाचार्य द्वारा ‘श्रीमद् भागवत’ में वर्णित कृष्ण की लीला का ज्ञान प्राप्त किया तथा अपने कई पदों में उसका वर्णन भी किया। उन्होंने ‘भागवत’ के द्वादश स्कन्धों पर पद-रचना की, ‘सहस्त्रावधि’ पद रचे, जो ‘सागर’ कहलाएं। सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर अकबर भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकें। अत: उन्होंने मथुरा आकर सूरदास से भेंट की। श्रीनाथजी के मंदिर में बहुत दिनों तक कीर्तन करने के बाद जब सूरदास को अहसास हुआ कि भगवान अब उन्हें अपने साथ ले जाने की इच्छा रख रहे हैं, तो वे श्रीनाथजी में स्थित पारसौली के चन्द्र सरोवर पर आकर लेट गए और श्रीनाथ जी की ध्वजा का ध्यान करने लगे। इसके बाद सूरदास ने अपना शरीर त्याग दिया।

सूरदासजी का कृष्ण प्रेमकाव्य-

संत सूरदास का कवि वात्सल्य रस में महत्वपूर्ण योगदान हैं। वह एक समर्पित संत थे जिन्होंने कृष्ण का अनुसरण किया। उनके काव्य में कृष्ण भक्ति का रस साफ झलकता है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि एक बार सूरदास ने अपने सपने में भगवान कृष्ण को देखा और कृष्ण ने उन्हें वृंदावन जाने के लिए कहा और वहीं वे श्रीकृष्ण के प्रबलभक्त गुरु वल्लभचार्य से मिले। सूरदास ने उनसे हिंदू शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया और तब से सूरदास ने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। उन्होंने पूरे जीवन केवल कृष्ण को ही अपना आदर्श माना और उनका अनुसरण करते हुए काव्य लिखा। सूरदासजी द्वारा लिखित पांच प्रमुख ग्रंथ बताए जाते हैं- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयंती और ब्याहलो। भगवान कृष्ण के कई भक्तों ने उनकी रास लीलाओं और युद्ध में उनके पराक्रमों का वर्णन किया है। कृष्ण भक्ति में लीन होकर उनके दीवानों ने उनके बारे में कई श्लोक और दोहे लिखे। किन्तु संत सूरदास के दोहों ने भगवान श्रीकृष्ण के एक नए रूप को दुनिया के सामने उजागर किया। केवल संत सूरदास की रचनाओं ने ही दुनिया का कृष्ण के बाल रूप से परिचय करवाया। लोगों ने कृष्ण के बाल रूप से प्रेम किया, उसे ‘नंदलाल’ कहकर खुद के बच्चे की तरह अपने घरों में स्थान दिया। सूरदास जी के पिता रामदास एक गायक और संगीतकार थे जिस कारण सूरदास जी बचपन से से ही संगीत में रूचि रखते थे। सूरदास जी ने कृष्ण की नटखट लीलाओ को अपने काव्य रूप में वर्णन किया है।

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै,
जोइ सोइ कछु गावै।।

मेरे लाल को आउ निंदरिया,
काहें न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै,
तोकौं कान्ह बुलावै।।

अर्थात, संत सूरदास यहां कह रहे हैं कि भगवान कृष्ण की मां उन्हें पालने में झुला रही हैं। मां यशोदा पालने को हिलाती हैं, फिर अपने ‘लाल’ को प्रेम भाव से देखती हैं, बीच बीच में नन्हे कृष्ण का माथा भी चूमती हैं। कृष्ण की यशोदा मैया उन्हें सुलाने के लिए लोरी भी गा रही हैं और गीत के शब्दों में ‘नींद’ से कह रही हैं कि तू कहाँ है, मेरे नन्हे लाल के पास आ, वह तुझे बुला रहा है, तेरा इन्तजार कर रहा है।

सुत-मुख देखि जसोदा फूली।
हरषित देखि दुध को दँतियाँ,
प्रेममगन तन की सुधि भूली।

बाहिर तैं तब नंद बुलाए,
देखौ धौं सुंदर सुखदाई।
तनक तनक सों दूध-दँतुलिया,
देखौ नैन सफल करो आई।

अर्थात, इस दोहे में संत सूरदास उस घटना का वर्णन कर रहे हैं जब पहली बार मां यशोदा ने कान्हा के मुंह में दो छोटे-छोटे दांत देखे। यशोदा मैया नन्हे कृष्ण का मुख देखकर फूली नहीं समा रही हैं। मुख में दो दांत देखकर वे इतनी हर्षित हो गई हैं कि सुध-बुध ही भूल गई हैं। खुशी से उनका मन झूम रहा है। प्रसन्नता के मारे वे बाहर को दौड़ी चली जाती हैं और नन्द बाबा को पुकार कर कहती हैं कि ज़रा आओ और देखो हमारे कृष्ण के मुख में पहले दो दांत आए हैं।

मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी।
किती बार मोहिं दूध पिबत भई,
यह अजहूँ है छोटी।।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं,
ह्वै ह्वै लाँबी-मोटी।
काढत-गुहत न्हवावत जैहैं,
नागिन सी भुई लोटी।।

काँचो दूध पिवाबत पचि-पचि,
देत न माखन-रोटी।
सूरज चिरजीवौं दोउ भैया,
हरि-हलधर की जोरी।।

इस लीला में सूरदासजी ने बालहृदय का कोना-कोना झाँक लिया है। यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पिलाना चाहती हैं, और कहती हैं कि इससे तुम्हारी चोटी बढ़ जायेगी और बलराम जैसी हो जायेगी। स्पर्धावश वह दूध पीने लगते हैं, पर वे चाहते हैं कि दूध पीते ही उनकी चोटी बढ़ जाये। और दूध पीकर भी चोटी न बढ़ने पर वह माँ यशोदा को उलाहना भी बड़े सशक्त ढंग से देते हैं- ‘तू कच्चा दूध तो भरपेट देती है, पर माखन-रोटी के बिना चोटी नहीं बढ़ेगी।‘

मैं नहिं माखन खायो।
मैया! मैं नहिं माखन खायो।।

ख्याल परै ये सखा सबै मिलि,
मेरैं मुख लपटायो।
देखि तुही छींके पर भाजन,
ऊंचे धरि लटकायो।।

हौं जु कहत नान्हें कर अपने,
मैं कैसें करि पायो।
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं
दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा
स्यामहिं कंठ लगायो।।

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो।।

राग रामकली में बद्ध यह सूरदास का अत्यंत प्रचलित पद है। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं में माखन चोरी की लीला सुप्रसिद्ध है। वैसे तो कन्हैया ग्वालिनों के घरों में जा-जाकर माखन चुराकर खाया करते थे। लेकिन आज उन्होंने अपने ही घर में माखन चोरी की और यशोदा ने उन्हें देख भी लिया। इस पद में सूरदास ने श्रीकृष्ण के वाक्चातुर्य का जिस प्रकार वर्णन किया है वैसा अन्यत्र नहीं मिलता।

सूरदास जयंती उत्सव-

सूरदास जी की जयंती पर हिंदी साहित्य के प्रेमी मथुरा, वृंदावन घाट, धार्मिक स्थलों एवं कृष्ण जी के मंदिर में संगोष्ठी करते है। इस दिन मंदिरों में सूरदास जी के दोहों का उच्चारण किया जाता है। कृष्ण भक्ति में लीन होकर भजन-कीर्तन किया जाता है। इस दिन स्कूल, कालेजो में सूरदास जी के जीवनी के बारे में छात्रों को बताया जाता है, उनके दोहो को समझाया जाता है। भगवान कृष्ण जी के भक्त और गायन, लेखन, साहित्य, प्रतिभा के धनी महान भक्त सूरदास जी को इस दिन शत शत नमन किया जाता है।

।। जय भगवान श्रीकृष्ण ।।



, Saint Surdas Jayanti. (06 May 2022)

The birth anniversary of Surdas ji, the poet of the Sagun stream of Bhaktikal, is celebrated with enthusiasm all over India. Mahakavi Surdas was a devotee of Lord Krishna. He was blind since birth, but the way Surdas has described the redness of Lord Krishna, even a person with eyes cannot do it. His love and feelings towards Krishna are reflected in his poetry as if he himself had seen and felt the pastimes of Shri Krishna. Surdas is considered to be the supreme devotee of Krishna. He has described every pastime of Krishna through his couplets in such a way that Krishna is visible everywhere. Surdas walked on the Pushtimarg of Guru Vallabhacharya in such a way that he was even called the ship of this path. Today, we see the Leela of Lord Shri Krishna portrayed by Surdas in his words by the grace of his Guru.

There is a lot of difference of opinion about the birth of great poet Surdas, but then many scholars consider his birth in 1478 AD. Surdas ji’s birth anniversary is celebrated on Vaishakh Shukla Panchami. This year Surdas Jayanti will be celebrated on May 06 (Friday). Honoring the greatness of Surdas, the Indian Postal Department had also issued a postal stamp in his name.

Life introduction of Surdas-

Kavi Surdas was born in a very poor Saraswat Brahmin family in Sihi village near Delhi. He had three elder brothers. Surdas was blind from birth, but God had sent him to the earth by filling him with a wonderful power of telling omens. At the age of only six, he had surprised his parents with his knowledge of telling omens. But shortly after that he left home and went to a village four kos away from his home and started living on the banks of the pond. Due to the knowledge of telling omens, his fame soon spread far and wide. Along with this achievement, he was also proficient in singing from the beginning. Then at the age of eighteen, he became disenchanted with the world and Surdas left that place and started living at Gaughat on the banks of the Yamuna (between Agra and Mathura). He met Guru Vallabhacharya at Gaughat. Surdas lived at Gaughat with many of his servants and they all addressed him as ‘Swami’. Vallabhacharya, impressed by his devotion to God, met him and initiated him into Pushtimarg. Vallabhacharya appointed him as a kirtankar at Shrinathji’s temple in Gokul and he remained there for life. There he remained engrossed in the devotion of Krishna. During that time he got the knowledge of Krishna’s Leela described by Vallabhacharya in ‘Shrimad Bhagwat’ and also described it in many of his posts. He composed verses on the twelve cantos of ‘Bhagwat’, composed ‘Sahastravadhi’ verses, which are called ‘Sagar’. Hearing the fame of Surdas’s poetry and singing, even Akbar could not live without being influenced by him. So he came to Mathura and met Surdas. After doing kirtan for many days in Shrinathji’s temple, when Surdas realized that God now wanted to take him with him, he lay down on the Chandra Sarovar of Parsauli situated in Shrinathji’s temple and meditated on Shrinathji’s flag. started doing. After this Surdas left his body.

Krishna love poetry of Surdasji-

Sant Surdas’s poet has an important contribution in Vatsalya Ras. He was a devoted saint who followed Krishna. The juice of Krishna devotion is clearly visible in his poetry. Some historians are of the opinion that once Surdas saw Lord Krishna in his dream and Krishna asked him to go to Vrindavan and there he met Guru Vallabhacharya, an ardent devotee of Shri Krishna. Surdas gained knowledge of Hindu scriptures from him and since then Surdas dedicated his whole life to Shri Krishna. He considered only Krishna as his ideal throughout his life and wrote poetry following him. Five major books written by Surdasji are told – Sursagar, Sursaravali, Sahitya-Lahari, Nal-Damayanti and Byhalo. Many devotees of Lord Krishna have described his Raas Leelas and his exploits in battle. Engrossed in the devotion of Krishna, his fans wrote many verses and couplets about him. But the couplets of Saint Surdas exposed a new form of Lord Krishna to the world. Only the creations of Saint Surdas introduced the world to the child form of Krishna. People loved the child form of Krishna, called him ‘Nandlal’ and gave him a place in their homes like their own child. Surdas ji’s father Ramdas was a singer and musician, due to which Surdas ji was interested in music since childhood. Surdas ji has described Krishna’s naughty pastimes in his poetic form.

Jasoda Hari Palanain Jhulavai. Halravai Dulravai Malhavai, Joi soi kachu gavai.

Come sleep my son, Why don’t you come and sleep? Why don’t you come without any reason, Who can you call?

That is, Saint Surdas is saying here that Lord Krishna’s mother is swinging him in the cradle. Mother Yashoda rocks the cradle, then looks lovingly at her ‘Lal’, kissing little Krishna’s forehead in between. Krishna’s mother Yashoda is also singing lullabies to make him sleep and in the words of the song she is saying to ‘sleep’ that where are you, come to my little son, he is calling you, waiting for you.

Jasoda blossomed from Sut-mukh. Harshit looks at the milk teeth, Forgot the thought of the body in love.

Then you called Nand outside, Look at the beautiful happiness. Tanak Tanak So Milk-Dantulia, Look, make your eyes successful.

That is, in this couplet Saint Surdas is describing the incident when mother Yashoda saw two small teeth in Kanha’s mouth for the first time. Mother Yashoda is not getting elated seeing the face of little Krishna. She has become so happy to see two teeth in her mouth that she has forgotten all her senses. His heart is throbbing with happiness. Out of happiness, she runs outside and calls out to Nand Baba and says that come and see that the first two teeth have come in the mouth of our Krishna.

Mother, when will the braid grow. How many times did Mohin drink milk, This parsley is small.

whatever you say, beni of strength, Whoa whoa, long and fat. Kadhat-Guhat Nhavawat Jai Hai, Snake like Bhui Loti.

Glass milk drink pachi-pachi, Don’t give butter-bread. Long live the sun brother, Hari-Haldhar’s Jori.

In this leela, Surdasji has peeped every corner of the child’s heart. Yashoda wants to feed milk to Shri Krishna, and says that this will increase your braid and become like Balarama. Out of competition, they start drinking milk, but they want that their peak will increase as soon as they drink milk. And when the braid does not grow even after drinking milk, he also scolds mother Yashoda in a very strong way – ‘You give a lot of raw milk, but without bread and butter, the braid will not grow.’

I did not eat the butter. Maiya! I did not eat the butter..

Khyaal parai ye sakha sabhi mili, He wrapped my face around him. Seeing you sneeze on the vessel, hung up high.

Yes, what do you say? How can I do wipes mouth sores Open both the backs. Dari Santi Musukai Jashoda Syamahin throated.

Bal Binod Mod Man Mohyo Show devotion. Surdas Jasumati could not get this happiness except Biranchi.

This is a very famous verse of Surdas composed in Raga Ramkali. The pastime of stealing butter is well-known in Shri Krishna’s childhood pastimes. By the way, Kanhaiya used to go to the houses of the cowherd girls and steal butter and eat it. But today he stole butter in his own house and Yashoda saw him too. In this post, the way Surdas has described Shri Krishna’s eloquence, it is not found anywhere else.

Surdas Jayanti Festival-

On the birth anniversary of Surdas ji, lovers of Hindi literature hold seminars in Mathura, Vrindavan Ghat, religious places and Krishna ji’s temple. On this day the couplets of Surdas ji are recited in the temples. Bhajan-kirtan is done by getting absorbed in the devotion of Krishna. On this day, students are told about Surdas ji’s biography in schools and colleges, his couplets are explained. Hundreds of salutations are paid to Surdas ji, a devotee of Lord Krishna and a great devotee of singing, writing, literature, talent.

, Hail Lord Krishna.

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