शरद पूर्णिमा- २०२३ इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है

महत्त्व, पूजन विधि और कथा-

शरद पूर्णिमा की खीर चतुर्दशी की रात यानि २७ अक्टूबर शुक्रवार की रात या फिर २८ अक्टूबर को जब शरद पूर्णिमा की तिथि प्रात: ०४:१७ बजे से शुरू हो तो उस समय उस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रख दें। उस दिन चंद्रास्त प्रात: ०४:४२ पर होगा। २८ अक्टूबर के प्रात: पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की औषधियुक्त रोशनी प्राप्त हो जाएगी।

पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा की तिथि २८ अक्टूबर को सुबह ०४ बजकर १७ मिनट पर शुरू होगी और यह २९ अक्टूबर को रात्रि ०१ बजकर ५३ तक रहेगी। शरद पूर्णिमा को शाम ०५ बजकर २० मिनट पर चंद्रोदय होगा।

शरद पूर्णिमा के दिन (शनिवार) चंद्र ग्रहण का सूतक काल दोपहर ०२:५२ बजे से लग रहा है, ऐसे में रात के समय न तो लक्ष्मी पूजा होगी और न चंद्रमा को अर्घ्य दे पाएंगे। इस स्थिति में आप शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी पूजा और चंद्रमा पूजन या तो सूतक काल से पूर्व करें या फिर चंद्र ग्रहण के समापन के बाद करें।

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। यूँ तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। ज्‍योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं।

चंद्रमा से बरसता है अमृत-

शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है। कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है।

अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है।

प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम ३० मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि १० से १२ बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। चांदनी रात में १० से मध्यरात्रि १२ बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।

श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास-

शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। शरद पूर्णिमा को रासलीला की रात भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था।

शरद पूर्णिमा पर पूजनविधि-

इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।

पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।

पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के १३ दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।

शरद पूर्णिमा की कथा-

एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दुख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया- ‘तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।’ तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया।

कुछ समय बाद उसके लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली- ‘तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।’ तब छोटी बहन बोली- ‘यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।’ इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है। * जय भगवान श्री कृष्ण *

।। शरदपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं ।।



Importance, method of worship and story-

On the night of Sharad Purnima Kheer Chaturdashi i.e. Friday night of 27 October or on 28 October when the date of Sharad Purnima starts at 04:17 am, then keep that kheer in the light of the moon. Moonset that day will occur at 04:42 am. On the morning of 28th October, on the full moon date, the medicinal light of the moon will be received.

According to the Panchang, the date of Sharad Purnima will start at 04:17 AM on October 28 and will continue till 01:53 AM on October 29. Moonrise will occur at 05:20 pm on Sharad Purnima.

On the day of Sharad Purnima (Saturday), the Sutak period of lunar eclipse is starting from 02:52 pm, in such a situation neither Lakshmi Puja will be done at night nor Arghya will be offered to the Moon. In this situation, you should perform Lakshmi Puja and Moon Puja on Sharad Purnima either before the Sutak period or after the end of the lunar eclipse.

The full moon of Ashwin month is called Sharad Purnima. It is also called Kojagari Purnima or Raas Purnima. Although full moon comes every month, but the importance of Sharad Purnima is much more than all of them. This full moon has also been described as special in Hindu religious texts. According to astrology, only on this day in the whole year the moon is full of sixteen arts. In Hindi religion this day is considered as Kojagar fast. This is also called Kaumudi fast.

Nectar rains from the moon-

There are many beliefs related to Sharad Purnima. It is believed that on this day the rays of the moon are filled with special nectar-like properties, which destroy many diseases. This is the reason that on the night of Sharad Purnima, people keep Kheer on the rooftops of their houses, due to which the rays of the moon come in contact with that Kheer, after which it is eaten. At some places, kheer prasad is also distributed publicly.

According to the study, milk contains lactic acid and nectar. This element exploits a large amount of power from the rays. Due to the presence of starch in rice, this process becomes easier. For this reason, the sages have prescribed keeping kheer in the open sky on the night of Sharad Purnima. This tradition is based on science. According to research, kheer should be made in a silver vessel. Silver has high resistivity. This keeps viruses away. Use of turmeric is prohibited.

Every person should take bath on Sharad Purnima for at least 30 minutes. The appropriate time is from 10 to 12 at night. A person who roams around in less clothes on a moonlit night between 10 am to 12 midnight gets energy. Due to the Somchakra, Nakshatra Chakra and the triangle of Ashwin, there is accumulation of energy from autumn and Nigraha occurs in spring. Ravana, the ruler of Lanka, also used to receive the rays on his navel through a mirror on the night of Sharad Purnima. Through this process he got rejuvenating powers.

Shri Krishna had composed Maharas-

There is also a belief related to Sharad Purnima that on this day, Goddess Lakshmi roams around at night to see who is awake and Mahalakshmi does well for the one who is awake and Mahalakshmi does not stay where the one is sleeping. Sharad Purnima is also called the night of Rasleela. According to religious scriptures, Lord Shri Krishna composed Raas with the Gopis on the night of Sharad Purnima.

Rituals of worship on Sharad Purnima-

On this day, after taking bath in the morning, the deity should be adorned with beautiful clothes and ornaments and worshiped with invocation, asana, achaman, clothes, smell, akshat, flowers, incense, lamp, naivedya, tambul, betel nut, dakshina etc.

Kheer made from cow milk should be mixed with ghee and sugar and offered to God at midnight.

When the full moon is situated in the middle of the sky, worship it and after offering Kheer as Naiveda, keep a vessel full of Kheer in the open moonlight at night and eat it the next day and give it to everyone.

The story should be narrated after fasting on the full moon day. Before listening to the story, put water in a pot, wheat in a glass, Roli and rice in both the leaves and worship the Kalash and offer Dakshina. Then after applying Tilak, take 13 grains of wheat in your hand and listen to the story. Then, after touching Mishrani’s feet with hands over the glass of wheat, give the glass of wheat to her. Offer water from the lotus to the moon at night.

Story of Sharad Purnima-

A moneylender had two daughters. Both of them used to fast on the full moon day. The elder sister observed the fast completely but the younger sister observed it incompletely. Whatever child the younger sister had, she would die as soon as she was born. But all the children of the elder sister remained alive. One day the younger sister called the big wise men and told them about her sorrow and asked them the reason. The pundits told – ‘You observe an incomplete fast on the full moon day, that is why your children die prematurely. By observing the fast on the full moon day as per the rituals, your children will remain alive.’ Then, following the orders of the pundits, he observed the fast on the full moon day as per the rituals.

After some time she had a son, but he too died soon. Then he made the boy lie down on his knees and covered him with a cloth. Then he called his elder sister and gave her the same seat to sit. When the elder sister started sitting, as soon as her clothes touched the child’s, the boy came alive and started crying. Then the elder sister got angry and said – ‘You wanted to defame me. If I had sat down, the boy would have died.’ Then the younger sister said – ‘He was already dead. I am alive because of your luck. Both of us sisters observe a fast on the full moon day, you complete it and I am incomplete, due to which my children die. But due to your virtue, this child has come alive.’ After this, he made a noise in the entire city that from today onwards everyone should observe the fast of Purnima, this child is going to give happiness. *Jai Lord Shri Krishna*

, Best wishes for Sharadpurnima.

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