श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता

सभी स्नेहीजनों को
मित्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं…!

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। श्रीकृष्ण से हम सीख सकते हैं कि मित्रता में धनवान और गरीब का भेद नहीं होना चाहिए।

प्रचलित कथा के अनुसार बालपन में श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा उज्जैन स्थित महर्षि संदीपनि के आश्रम में एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। इसी आश्रम में श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई। एक दिन गुरुमाता ने इन दोनों को लकड़ियां लेकर आने के लिए कहा। गुरुमाता ने सुदामा को दोनों के लिए चने दिए थे और कहा था कि ये तुम दोनों बराबर बांटकर खा लेना।

जंगल में पहुंचकर सुदामा ने वो चने अकेले ही खा लिए। जब सुदामा चने खा रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा था कि तुम क्या खा रहे हो? तब सुदामा ने झूठ बोला कि ठंड की वजह से मेरे दांत बज रहे हैं। आश्रम में शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों मित्र अलग हो गए।

बहुत समय बाद श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश हो गए थे और सुदामा गरीब ही थे। गरीबी से दुखी होकर सुदामा की पत्नी ने उन्हें श्रीकृष्ण से मदद मांगने के लिए द्वारिका भेजा। जब सुदामा अपने प्रिय मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे तो महल के सैनिकों ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया। जब श्रीकृष्ण को मालूम हुआ कि सुदामा आए हैं तो वे खुद सुदामा को लेने पहुंच गए।

उन्होंने सुदामा का सत्कार किया। एक मित्र को दूसरे मित्र के साथ कैसे रहना चाहिए ये श्रीकृष्ण ने सिखाया है। सुदामा का अच्छी तरह आतिथ्य सत्कार किया और सुदामा को विदा करते समय खाली हाथ भेज दिया। सुदामा भी श्रीकृष्ण से कुछ मांग नहीं सके। बाद में सुदामा जब अपने गांव पहुंचे तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण ने उनकी सभी परेशानियां खत्म कर दी हैं।

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की सीख यह है कि दोस्ती में अमीरी-गरीबी को महत्व नहीं देना चाहिए। मित्रता में सभी समान होते हैं और इस बात ध्यान रखना चाहिए। तभी मित्र धर्म का सही तरीके से पालन होता है। मित्रता में किसी को कुछ देते समय उसका दिखावा नहीं करना चाहिए।

।। जय भगवान श्री कृष्ण ।।

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