अध्यात्मिक पुस्तक का महत्व

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एक बूढ़ा किसान अपने छोटे पोते के साथ पहाड़ों के बीच एक खेत में रहता था। हर सुबह उसके दादाजी रसोई की मेज पर बैठकर भगवत गीता पढ़ रहे होते थे।

पोता उनके जैसा ही बनना चाहता था और वह हर तरह से उनकी नकल करने की कोशिश करता रहता था।

एक दिन पोते ने पूछा, “दादाजी, मैं आपकी तरह ही भगवत गीता पढ़ने की कोशिश करता हूँ लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आती है, और जो मुझे समझ में आता है वह सब भी मैं किताब बंद करते ही भूल जाता हूँ। ऐसे में भगवत गीता पढ़ने से मुझे क्या फायदा?”

दादाजी ने चूल्हे में कोयला डालते हुए पोते की ओर मुँह मोड़ कर जवाब दिया, “इस कोयले की टोकरी को नदी में ले जाओ और मुझे इसमें पानी भरकर वापस लाकर दो।”

लड़के ने वैसा ही किया जैसा उससे कहा गया था, लेकिन उसके घर वापस आने से पहले ही टोकरी से सारा पानी निकल गया।

दादाजी हँसे और कहा, “अगली बार तुम थोड़ा तेज चलना,” और दादाजी ने उसे फिर से कोशिश करने के लिए कहा और टोकरी के साथ नदी तक वापस भेज दिया।

इस बार लड़का तेजी से भागा, लेकिन घर लौटने से पहले ही टोकरी फिर से खाली थी। फूलते साँस के साथ उसने अपने दादा से कहा कि, “इस टोकरी में पानी भरकर लाना असंभव है।” और वह अब टोकरी के बदले में एक बाल्टी में पानी लेने चला।

दादाजी ने कहा, “मुझे पानी बाल्टी में नहीं चाहिए; मुझे पानी टोकरी में ही चाहिए। तुम बस मेहनत नहीं कर रहे हो,” और फिर दादाजी लड़के को दोबारा से कोशिश करते हुए देखने के लिए दरवाजे से बाहर चले गये।

लड़का जानता था कि यह असंभव था, लेकिन फिर भी वह अपने दादाजी को दिखाना चाहता था कि वह कितनी भी तेजी से दौड़ ले, घर वापस आने से पहले पानी टोकरी से बाहर निकल ही जाएगा। लड़के ने फिर से टोकरी को नदी में डुबोया और जोर-जोर से दौड़ा, लेकिन जब वह अपने दादाजी के पास पहुँचा तो टोकरी फिर से खाली थी।

उसने हिम्मत हार ली और दादाजी से कहा, “देखो! यह बेकार है।”

“तो तुम्हें लगता है कि यह बेकार है?” दादाजी ने कहा। अगर ऐसा है तो तुम टोकरी को एक बार ग़ौर से देखो।

लड़के ने टोकरी की ओर देखा। पहली बार उसने महसूस किया कि टोकरी कुछ अलग लग रही है। वह एक गंदी पुरानी कोयले की टोकरी से बदलकर अंदर और बाहर से एक साफ टोकरी में बदल चुकी है।

“बेटा, जब आप भगवत गीता पढ़ते हैं तो ऐसा ही होता है। हो सकता है कि आप सब कुछ न समझें या याद न रखें, लेकिन जब आप इसे पढ़ेंगे, तो आप अंदर और बाहर से बदल जाएँगे। हमारे जीवन में भगवान यही काम करते हैं।”

यह केवल भगवत गीता के बारे में ही नहीं है बल्कि किसी भी आध्यात्मिक पुस्तक के बारे में है। यह हमारा जीवन बदल देती हैं।



An old farmer lived with his little grandson on a farm in the middle of the mountains. Every morning his grandfather was sitting at the kitchen table reciting the Bhagavad Gita.

The grandson wanted to be like him and tried to imitate him in every way.

One day the grandson asked, “Grandfather, I try to read the Bhagavad Gita like you, but I do not understand it, and what I do understand, I forget as soon as I close the book.” What is the benefit to me of reading the Bhagavad Gita?”

Grandfather pouring coal into the stove turned to his grandson and replied, “Take this coal basket to the river and bring me back after filling it with water.”

The boy did as he was told, but all the water in the basket ran out before he could return home.

Grandfather laughed and said, “Next time you walk a little faster,” and Grandfather told him to try again and sent him back to the river with the basket.

This time the boy ran faster, but before he could return home the basket was again empty. With bated breath he told his grandfather, “It is impossible to carry water in this basket.” And now he went to get water in a bucket instead of the basket.

Grandpa said, “I don’t want the water in the bucket; I want the water in the basket. You’re just not trying hard enough,” and then Grandpa went out the door to watch the boy try again.

The boy knew it was impossible, but still wanted to show his grandfather that no matter how fast he ran, the water would run out of the basket before he could get back home. The boy again dipped the basket into the river and ran hard, but when he reached his grandfather the basket was empty again.

He lost his courage and said to Grandpa, “Look! It’s useless.”

“So you think it’s useless?” Grandpa said. If so, then take a look at the basket carefully.

The boy looked at the basket. For the first time he felt that the basket looked different. She has changed from a dirty old coal basket to a clean basket inside and out.

“Son, this is what happens when you read Bhagavad Gita. You may not understand or remember everything, but when you read it, you will be changed from inside and outside. This is the work of God in our lives. We do.”

It is not only about Bhagavad Gita but about any spiritual book. It changes our life.

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