महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ आरंभ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया।
महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया।
निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे।
इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा।
समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई।
राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा (खीर) को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ-
जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। उस शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।
।। श्रीरामाय नमः ।।
Maharaja Dasaratha decided to start a yagya to get a son. As per the order of Maharaj, Shyamkarna horse was released along with the Chaturangini army.
Maharaj Dasaratha sent an invitation to all the intellectuals, ascetics, learned sages and great scholars of Vedas to perform the yagya.
When the appointed time arrived, Maharaja Dasaratha along with all the visitors came to the Yagya Mandap with his Guru Vashishtha and his best friend, Rishi Ringa, the son-in-law of Lobhapad, the ruler of Anga.
In this way the great Yagya was formally started. The whole atmosphere started reverberating with the loud recitation of the hymns of the Vedas and smelling of the fragrance of Samidha.
The Yajna ended with all the Pandits, Brahmins, Rishis etc. being presented with proper money-grains, cows etc. and farewell with respect.
King Dashrath took the Yagya’s Prasad Chara (Kheer) to his palace and distributed it among his three queens. As a result of taking the Prasad, all the three queens conceived.
When Sun, Mars, Saturn, Jupiter and Venus were sitting in their exalted positions in Punarvasu Nakshatra on the ninth day of Shukla Paksha of Chaitra month, a child was born from the womb of Maharaja Dasaratha’s elder queen Kaushalya. –
Which was of blue colour, having magnetic attraction, extremely bright, supremely radiant and extremely beautiful. Those who saw that baby used to keep on watching. After this, in auspicious constellations and auspicious time, one son of Queen Kaikeyi and two sons of third queen Sumitra were born.
।। Ome Sri Ramaya Namah ।।