राममय- भारत

आज भारतीय सभ्यता ने अपने पुनरुत्थान और प्रस्थान के लिए जिस चरित्र को चुना, वह राम हैं। ऐसा नहीं कि राम से पहले भारत में महापुरुष नहीं हुए। अनेक हुए। लेकिन राम एक प्रतिमान बन गए। मर्यादा, त्याग, तितिक्षा, तप, प्रेम, करुणा, शौर्य और धर्म का वैसा विग्रह भारत ने पहले नहीं देखा था।

भारतीय जीवनधारा ने राम को प्रतीक पुरुष का स्थान दिया। सनातन के सातत्य में जिस महाग्रंथ का पारायण हम युगों से करते आ रहे हैं, राम उस ग्रंथ के प्रथम अध्याय बन गए। राम के बिना भारतीय जीवनधारा की कल्पना पूरी नहीं होती। वह रामयुग को प्रणाम कर आगे बढ़ती है।

राम ने हजारों वर्ष पूर्व जिस आदर्श की स्थापना की, उससे बड़ा आदर्श हम नहीं बना सके। आदर्श के सभी उपमान रामतत्व में समा गए। इसलिए जब भारतीय सभ्यता ने हजार वर्ष के संघर्ष और जय-पराजय के बाद अपना प्रस्थान बिंदु चुना तो उसे राम ही ध्यान आए। वह राम का मंदिर बनाने को उमड़ पड़ा। ‘रामो विग्रहवान धर्म:’ यह वाल्मीकि कहते हैं और स्वयं राम कहते हैं-

धर्ममर्थं च कामं च पृथिवीं चापि लक्ष्मण।
इच्छामि भवतामर्थे एतत प्रतिश्रृणोमि ते।।

लक्ष्मण! मुझे अपने लिए राज्यभोग की कोई कामना नहीं है। कभी नहीं थी। मैं तो धर्म, अर्थ, काम और पृथ्वी के राज्यसुख केवल तुम लोगों के लिए चाहता हूॅं।

ऐसा अपरिग्रही, निष्काम व्यक्ति ही उस राज्य की स्थापना कर सकता था, जिसका उदाहरण हम आज तक देते हैं। रामराज्य हमारी सबसे बड़ी एषणा रही। एक ऐसी राजव्यवस्था जो आदर्श हो। न जाने कैसी तो होगी! कौतुक में हम डूबे रहे! उस व्यवस्था की कामना आज भी है।

हम जानते हैं कि वैसी व्यवस्था दुबारा संभव न होगी क्योंकि उसके लिए राम को विग्रह से मनुष्य रूप में आना होगा। किन्तु विग्रह में भी वही राम प्रतिष्ठित हैं। उस विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा इसी अर्थ में सांकेतिक और युग परिवर्तन की साक्षी है।

राम और कृष्ण अनन्य हैं।‌ यों तो हम सभी देवी-देवताओं को सगुण रूप में देखते पूजते हैं परन्तु राम और कृष्ण मनुष्य, अनन्य साधारण मनुष्य रूप में आते हुए महामानव के रूप में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। ऐसे मनुष्य जो अपनी मनुष्यता से देवत्व में संतरण करते हैं और पुनः पुनः मनुष्य रूप में प्रकट होने की संभाव्यता को बनाए रखते हैं।

राम कृष्ण से पहले आते हैं। राम सीधी रेखा पर चलते हैं। वैसा दृढ़निश्चयी, सत्यनिष्ठ, अडिग मार्गी, निर्भ्रांत, वीर, धर्मात्मा उनसे पूर्व कोई नहीं। उनके बाद भी राम सदृश दूसरा नहीं।

भगवान कृष्ण भिन्न अर्थों में अद्वितीय हैं। इसीलिए राम भारतीय सभ्यता के इस नए युग के नायक हैं। उनकी ही छत्रछाया में इस देश को रहना होगा। राम ही इस नए पथ के प्रदर्शक हैं। १९९२ में ध्वंस हुआ था। ध्वंस कष्ट लिए आता है। अब निर्माण का समय है। आनन्द लिए आया है।

।। जय भगवान श्री ‘राम’ ।।

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *