
पीतल का लोटा
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद
परम पिता परमात्मा को हम आंखों में बसा ले जिससे कुछ भी करते हुए प्रभु हमारे दिल में बैठे रहे
ध्यान में परमात्मा के चिन्तन के अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान को हम शरीर रूप से भजते भगवान को
एक भक्त पृथ्वी माता से प्रार्थना करते मेरी अनजाने में पृथ्वी माता से रहती। हे पृथ्वी माता देख तुने मुझे
हमारा मन हर समय विचार बनाता है, सुख के साधन ढुंढता है। मन एक क्षण के लिए भी ठहरता नहीं
एक आम आदमी मै का रूप है वह अपने आप को शरीर मानता है। वह कुछ भी करता है तब
निष्काम साधना यह साधना आध्यात्मिक उन्नति के एकमेव उद्देश्य से की जाती है। अतः इस उद्देश्य को ध्यान में रखते
आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है । वो स्वयं भी हथियार डाल
“बरसाना”बरसाने की पीली पोखर से प्रेम सरोवर जाने वाले रास्ते से कुछ हटकर वन प्रांत में एक पुराना चबूतरा है।
राधे राधे
अरे मन ! अवसर बीत्यो जात । काल – कवल वश विधि हरि , हर सब , तोरी