भाव की गहराई 3
हम भगवान को भजते रहते हैं तब मालिक इस मन को सुधार देते है। भगवान का सिमरण ऐसी पुंजी है
हम भगवान को भजते रहते हैं तब मालिक इस मन को सुधार देते है। भगवान का सिमरण ऐसी पुंजी है
जिसने दिल ही दिल में प्रभु प्राण नाथ से बात की है। अपने अन्तर्मन में लग्न का दिपक प्रज्वलित किया
भक्त के दिल में प्रेम भाव में वात्सल्य भाव है। भक्त भगवान को ऐसे समेट लेना चाहता है कि जैसे
मैं कई बार अपने मन से बात करते हुए कहती हूं कि अ मन देख तु चाहे कितना ही इधर
. एक ब्राह्मण था जो भगवान को भोग लगाये बिना खुद कभी भी भोजन नहीं करता था। हर दिन
अब ये दिल आनन्द प्राप्त करना नहीं चाहता है एक दिन आनंद का त्याग करना ही पड़ता है खोज कर
हमे इस जग को छोड़ने से पहले भगवान को सांसो में बसाना है। इस कोठरी का उदार जीते जी कर
आत्मा और परमात्मा का महामिलन में न तो काम है, न गोपियों में परस्वार्थ ईर्ष्या है, न कुछ पाने की
हे परम पिता परमात्मा तुमने जगत को रचने में कितनी कारीगरी की है। और मै मतिहीन तुम्हारी कारीगरी को न
तन और मन दोनों भगवान के समर्पित नहीं होंगे। हृदय में मिलन की तङफ जागृत नही होगी। हर क्षण सांवरे