मन की पवित्रता
आनंद एक ऐसा परिस्थिति हैं जो अपने आप विशाल रूप ले लेता है। संसार में यदि एक व्यक्ति की सोच
आनंद एक ऐसा परिस्थिति हैं जो अपने आप विशाल रूप ले लेता है। संसार में यदि एक व्यक्ति की सोच
साधक रोटी बना रहा है। रोटी को पुरी फुली हुई देखता है तो रोटी के अन्दर उसे लगता है कि
सच्चे भक्त के दिल की एक ही पुकार होती है कि किस प्रकार मेरे स्वामी भगवान् नाथ का मै बन
आत्मा परमात्मा के पास अकेले जाये तो कैसे जाए। आत्मा शरीर को कैसे भगवान नाथ श्री हरी की भक्ति से,
हमारे अन्दर सब कुछ है। हम बाहर की दुनिया में खोए रहते हैं अपने नजरिए से अन्तर्मन में झांक कर
जय दुख देवता तु मुझे रूलाने आया है। मै तेरी क्या सेवा कर सकती हूँ। तु मन को रूला सकता
यह शरीर ही कोठरी हैं कोठरी को बाहर से नहीं अन्तर्मन से सजाना है। कोठरी में हर समय झाङु लगती
परमात्मा को प्रणाम है गुरु देव को प्रणाम प्रभु प्राण नाथ, आत्मसमर्पण, आत्म स्वरूप आत्म तत्व,आत्मा ईश्वर है विश्वात्मा ।चेतन
भगवान् देख मेरे पास तो एक ही दिल था वो मैंने तुम्हें दे दिया ।भगवान् मुझे भी दो तीन दिन
भगवान की सच्ची भक्ति के लिए हमे कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। कुछ ही समय भगवान का नाम