हरि ॐ तत्सत, परमात्मा की खोज की
हरि ॐ तत्सत, इस संसार में जिस जिस ने परमात्मा की खोज की। सबके परमात्मा की खोज के मार्ग अलग
हरि ॐ तत्सत, इस संसार में जिस जिस ने परमात्मा की खोज की। सबके परमात्मा की खोज के मार्ग अलग
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं। कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील
नमामि भक्त वत्सलं कृपालु शील कोमलम् भजामि ते पदाम्बुजम् अकामिनां स्वधामदं | निकाम श्याम सुंदरम भवाम्बुनाथ मन्दरम् प्रफुल्ल कंज लोचनं
इक दिन जब मोहन नेराधा जी के कहने परदूध दुहा थाऔर राधा जी ने जाने काउपक्रम किया थातब मोहन ने
भक्ति भाव की बात है. मनुष्य का अस्तित्व तीन तलों में विभाजित है. शरीर बुद्धि ह्रदय दूसरी तरह से कहें,
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए | कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये | ज्योति दीप मन होय
प्रेम ही प्रभु का विधान है वा प्रेम ही भक्ति है। तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो।
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे | नाचे दुनिया सारी, आनंद रस बरसे रे || नटखट नटखट हैं नंदनागर,
तुम मुझे देखा करो और मैं तुम्हें देखा करूँ हमारा मन वहीं लगता है, जहाँ हमारी अभिलाषित वस्तु होती है,
सुखों का सागर, कलप वृक्ष, चिंतामणी, कामधेन गाय जिसके वश में हैं। चार पदारथ अठारह सिद्धियाँ नौ निधियाँ जिसकी हाथ