
शबरी की भक्ति
शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी जब विवाह योग्य हुई तो इनके पिता ने एक भील कुमार से
शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी जब विवाह योग्य हुई तो इनके पिता ने एक भील कुमार से
सांवरा कहता है कि जो मुझे प्रेम से भजता है। उसके मन मन्दिर में मै निवास करता हूँ ।और हर
जानकी माता बोली — बेटा हनुमान! बड़ा भला किया, जो तुमने बता दिया। हनुमान जी चरणों में गिर
ठाकुर जी की नाव भवसागर के पार जा रही थी।ठाकुर जी ने कहा :- जिसे बैठना हो बैठ जाए।अब हम
एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे, रास्ते
वृंदावन के पास एक गाँव में भोली-भाली माई ‘पंजीरी’ रहती थी। दूध बेच कर वह अपनी जीवन नैया चलाती थी।
जय श्रीकृष्ण ये वृन्दावन परिक्रमा मार्ग में ठाकुर जी का लीला स्थान है lअगर आप विशुद्ध भाव के साथ यहां
अपनी माता कीर्ति जी से सखियों-संग खेलने का बहाना कर, श्री राधा जी श्री कृष्ण से मिलने उनके घर पहुँच
कैलाश पर्वत पर महावतार बाबाजी के साथ एक मुलाकात की कहानी …“मैं पद्मासन में बैठा, मेरा ध्यान आज्ञा चक्र पर
*एक सब्ज़ी वाला था, सब्ज़ी की पूरी दुकान साइकल पर लगा कर घूमता रहता था ।”प्रभु” उसका तकिया कलाम था