
होली खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरो री,
होली खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरो री, कोरे-कोरे कलश मँगाओ, रंग केसर को घोरो री, मुख ते
होली खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरो री, कोरे-कोरे कलश मँगाओ, रंग केसर को घोरो री, मुख ते
।। श्री कृष्णाय वयं नमः ।। अर्जुन को भगवान श्री हरि कृष्ण अपने विराट विश्वरूप का दर्शन कराते हुए कहते
जय श्री सीताराम जी की श्री रामचरित मानस लंका काण्ड दोहा :दुहु दिसि जय जयकार करिनिज जोरी जानि।भिरे बीर इत
आज बसंत पंचमी पर्व है। इस दिन बसंत ऋतु का प्रारंभ होता हैं बसंत को ऋतु राज माना जाता है।
मूर्तिकार की अनुभूति गर्भगृह में प्रवेश करते ही मूर्ति की आभा बदल गई रामलला की मूर्ति बनते हुए देखनें रोज
जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान।रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।। (दोहावली १४२) अर्थात्–सज्जन उसी शरीर का आदर
सतगुरु अपने शिष्य को संसार रूपी भवरोग से मुक्त करता हैजो असत्य से सत्य की ओर ले जाएंजो मृत्यु
श्रीकृष्ण शयन-कक्ष में कुछ खोज रहे हैं। बार-बार तकिये को उठाकर देख रहे हैं। नीलाभ वक्ष पर रह-रहकर कौस्तुभमणि झूलने
(अंक – १)श्री रामचरितमानस में राम कथा का प्रारंभ मुनि भारद्वाज एवं ज्ञानी याज्ञवल्क्य के संवाद से प्रारंभ होता है।
राम दरअसल प्रत्येक रूप में एक आदर्श हैं । कहते हैं कि पूर्णावतार कृष्ण थे , कृष्ण सोलह कलाओं से