जब तेहिं कीन्हि राम के निंदा।
जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा।क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।। हरि हर निंदा सुनइ जो काना।होइ पाप गोघात समाना।। कटकटान कपिकुंजर
जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा।क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।। हरि हर निंदा सुनइ जो काना।होइ पाप गोघात समाना।। कटकटान कपिकुंजर
माता पार्वती की स्वीकारोक्ति – श्री राम ब्रह्म हैं।शंकर जी कहते हैं –तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी।कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी।।हे
भक्त मन को, दिल को, नैनो को, राम नाम अमृत का रसपान कराना चाहता है । आत्मा कहती हैं, कि
राम राज्य का अर्थ है हमारे मन में पवित्रता हो। हमारे अन्तर्मन मे भगवान राम के आदर्श हो। जीवन में
होठों पर रहता है यही नाम सुबह शाममेरे राम मेरे राम।सबका रखवाला है राम नाममेरे राम मेरे रामजिसके ह्दय में
।।जय सियाराम ।।जय राम रमा रमनं समनं ।भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥अवधेस सुरेस रमेस बिभो ।सरनागत मागत पाहि प्रभो
हे प्रभुवर हे वैदेही वर मुझको निज चरण बसा लीजै।पद कमलों का मैं मधुप बनूं कुछ मधुरस कण बरसा दीजै।।कितने
। छन्द-मामभिरक्षय रघुकुल नायक।धृत बर चाप रुचिर कर सायक।। मोह महा घन पटल प्रभंजन।संसय बिपिन अनल सुर रंजन।। अगुन सगुन
मंत्र मुग्ध कर प्रेम से, भगवन आएं द्वार, हरि छवि मेंरे मन बसे, दुख हरते दातार । प्रेम हृदय अर्पण
हे रोम रोम मे बसने वाले राम जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मै तुझ से क्या मांगूं आश का बंधन