
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम
भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के
भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के
भगवान् का केवल नाम ‘राम-राम’, ‘कृष्ण-कृष्ण’, ‘हरि-हरि’, ‘नारायण-नारायण’, अन्तःकरण की शुद्धि के लिये, पापों की निवृत्ति के लिये पर्याप्त है।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़ै बन माहि।ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।। संत कबीर के इस दोहे का अर्थ
काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सीघाट। उनकी कथा को बहुत
गीताप्रेस गोरखपुर में पूज्य श्रीहरिबाबा महाराज की एक डायरी रखी है ।उसमें बाबा के द्वारा हस्तलिखित लेख है । उसमें
परमात्मा विराट् है, हिरण्यगर्भ है और ईश्वर है, अर्थात स्थूल, सूक्ष्म और कारण है। इस अव्यक्त, अनादि और अनन्त देवता
साधना जगत में हम किसी की प्रशंसा में उन्हें साधक, भक्त, योगी या योगिनी आदि से संबोधित कर देते हैं
लक्ष्य निर्धारित करे मै प्रभु भगवान को देखना चाहता हूँ। निहारना चाहता हूं भगवान से बात अपने ही विचारों से
प्रेम दिवाने सभी भये , बदल गए सब रूप lसहज समझ न आ सके , कौन रंक को भूप ll
1 सर्वज्ञ -ईश्वर में शुद्ध सतोगुण पाया जाता है इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है , जितना सतोगुण