
ईश्वर के पञ्चकर्म
परमात्मा विराट् है, हिरण्यगर्भ है और ईश्वर है, अर्थात स्थूल, सूक्ष्म और कारण है। इस अव्यक्त, अनादि और अनन्त देवता
परमात्मा विराट् है, हिरण्यगर्भ है और ईश्वर है, अर्थात स्थूल, सूक्ष्म और कारण है। इस अव्यक्त, अनादि और अनन्त देवता
साधना जगत में हम किसी की प्रशंसा में उन्हें साधक, भक्त, योगी या योगिनी आदि से संबोधित कर देते हैं
लक्ष्य निर्धारित करे मै प्रभु भगवान को देखना चाहता हूँ। निहारना चाहता हूं भगवान से बात अपने ही विचारों से
प्रेम दिवाने सभी भये , बदल गए सब रूप lसहज समझ न आ सके , कौन रंक को भूप ll
1 सर्वज्ञ -ईश्वर में शुद्ध सतोगुण पाया जाता है इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है , जितना सतोगुण
सत्संग यानी सत् के साथ हों जाना सत् का संग हों जाना याने कि सत् ख़ुद हों जाना सत्संग कोई
राहु के कारण जीवन में समस्या बताई गई है ?? उपाय भी मन से कर रहे या किया पर कोई
केवल चाहने मात्र से जीवन कभी भी सम्मानीय एवं अनुकरणीय नहीं बन जाता है। सहनशीलता का गुण ही किसी जीवन
कबीर के गुरु थे रामानंद। कबीर उनको नाचते देखते। तंबूरा बजता है, रामानंद नाचते हैं। कबीर उनके पास बैठते हैं।
राम और लक्ष्मण का दर्शन करते ही राजा जनक का मन प्रेम में मग्न हो गया। उन्होंने विवेक का आश्रय