
महेशकी महानता
महेश मंडल जातिका था नमः शूद्र- चाण्डाल। दिनभर मजदूरी करके कुछ पैसे लाता, उसीसे अपना तथा अपनी स्त्री, पुत्र, कन्या-
महेश मंडल जातिका था नमः शूद्र- चाण्डाल। दिनभर मजदूरी करके कुछ पैसे लाता, उसीसे अपना तथा अपनी स्त्री, पुत्र, कन्या-
सच्चा दान युधिष्ठिरका महान् अश्वमेध यज्ञ जब पूरा हुआ, उसी समय एक बड़ी उत्तम किंतु महान् आश्चर्यमें डालनेवाली घटना घटित
एक बार लियेन्स नगरके विद्वानोंने एक लेखके लिये पुरस्कारकी घोषणा की। उस समय नेपोलियन युवक थे। पुरस्कार प्रतियोगितामें उन्होंने भी
प्राज्ञाः पुरुषकारेषु वर्तन्ते दाक्ष्यमाश्रिताः ॥ विद्वान् कुशलताका आश्रय लेकर परिश्रममें ही लगे रहते हैं। The wise rely on skill in
सोचो, समझो, फिर करो संस्कृत-काव्यपरम्परामें भारवि नामके एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं। उनका ‘किरातार्जुनीयम्’ नामसे प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें महाभारतकी
एक ब्राह्मणके दो पुत्र थे। दोनोंके विधिपूर्वक यज्ञोपवीतादि सभी संस्कार हुए थे। उनमें ब्राह्मणका बड़ा पुत्र तो यज्ञोपवीत संस्कारके पश्चात्
बिगानी छाछपर मूँछें एक समयकी बात है। एक किसान किसी दूरके गाँवमें भैंस खरीदनेके लिये गया। उस समय गाँवोंमें न
रँगी लोमड़ी एक लोमड़ी खानेकी तलाशमें एक गाँवमें घुस गयी। वह एक रंगरेजके घरके पिछवाड़े में चली गयी, जहाँपर रंगसे
जार्ज मूलरका प्रार्थनामें अटल विश्वास था अपने जीवनमें उन्हें किसी भी दिन निराश नहीं होना पड़ा। एक समयकी बात ।
सुख के माथे सिल परौ जो नाम हृदय से जाय। बलिहारी वा दुःख की जो पल-पल नाम रटाय ॥ महाभारतका