
महाशंकर
महाशंकर “वृक्षोंको शंकर क्यों कहते हैं?’ एक पुत्रने पितासे पूछा। पिताने वृक्षमें जल डालते हुए कहा-‘बेटा! समुद्रमन्थन हुआ, तब देव
महाशंकर “वृक्षोंको शंकर क्यों कहते हैं?’ एक पुत्रने पितासे पूछा। पिताने वृक्षमें जल डालते हुए कहा-‘बेटा! समुद्रमन्थन हुआ, तब देव
प्रतिभाकी पहचान यूनानदेशके थ्रेसप्रान्तमें एक निर्धन बालक दिनभर परिश्रम करके जंगलमें लकड़ियाँ काटता, फिर उनका गट्ठर बनाकर शामको बाजारमें बेचता
अक्लिष्टकर्मा राजराजेन्द्र, राघवेन्द्र श्रीरामभद्रकी राजसभा इन्द्र, यम और वरुणकी सभाके समकक्ष थी। उनके राज्यमें किसीको आधि-व्याधि या किसी प्रकारकी भी
वाराणसीके सबसे बड़े सेठका पुत्र यश विलासी और विषय था उसके विहारके लिये ग्रीष्म, हेमन्त और वर्षाकालके तीन अमूल्य प्रासाद
गजनीसे ईरानको एक सड़क जाती है। इस रास्तेपर पहले लुटेरोंका भयंकर अड्डा था और इस मार्गसे कोई भी व्यापारी निरापद
एक महात्मा वृन्दावनके पास वनमें बैठे थे। उनके मनमें आया कि सारी उम्र ऐसे ही बीत गयी, न भगवान् के
प्राचीनकालमें एक गौतमी नामकी वृद्धा ब्राह्मणी थी। उसके एकमात्र पुत्रको एक दिन सर्पने काट लिया, जिससे वह बालक मर गया।
महात्मा गांधीजी उन दिनों चम्पारनमें थे। एक दिन वे वहाँसे बेतिया जा रहे थे। रातका समय था, ट्रेन खाली थी।
माँका दिल एक स्त्री थी। उसके पाँच बेटे थे। वह अपने पाँचों बेटोंको बहुत मानती थी। उसके बेटे भी आपसमें
पूज्यपाद गोस्वामी श्रीगुल्लूजी देववाणी – संस्कृत, हिंदी या व्रजभाषाको छोड़कर दूसरी भाषाका एक शब्द भी नहीं बोलते थे। उन्होंने एक