प्रसादका अपमान
प्रसादो जगदीशस्य अन्नपानादिकं च यत् । ब्रह्मवन्निर्विकारं हि यथा विष्णुस्तथैव तत् ॥ नरेशका हृदय जला जा रहा था। वे मन-ही
प्रसादो जगदीशस्य अन्नपानादिकं च यत् । ब्रह्मवन्निर्विकारं हि यथा विष्णुस्तथैव तत् ॥ नरेशका हृदय जला जा रहा था। वे मन-ही
गढ़मण्डलके राजा पीपाजी राज-काज छोड़ रामानन्द स्वामीके शिष्य बने और उनकी आज्ञासे द्वारकामें हरि दर्शनार्थ गये। दर्शन करके अपनी पत्नीसहित
काशीनरेशकी महारानी अपनी दासियोंके साथ वरुणा स्नान करने गयी थीं। उस समय नदीके किनारे दूसरे किसीको जानेकी अनुमति नहीं थी।
दासताके विरुद्ध विश्वविख्यात लेखिका हैरियट स्टोने अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘अंकल टॉम्स केबिन’ (टॉम काकाकी कुटिया) किन परिस्थितियोंके बीच लिखा, यह
वृन्दावनमें एक महात्मा हो गये हैं। उनका नाम था नारायणस्वामी। वे कुसुमसरोवरपर रहा करते थे। वहीं मन्दिरका एक पुजारी भी
घरमें ही वैरागी चक्रवर्ती भरतके जीवनकी एक घटना है कि एक दिन एक विप्रदेवने उनसे पूछा- ‘महाराज! आप वैरागी हैं
‘भय बिनु होइ न प्रीति’ सेनासहित लंका जानेके लिये श्रीरघुनाथजी समुद्रके तटपर कुशा विछा महासागरके समक्ष हाथ जोड़ पूर्वाभिमुख हो
हरगिज नहीं करेंगे एक था राक्षस उसने एक आदमीको पकड़ लिया था। वह उससे बराबर काम लेता रहता था। जब
सत्कर्मपर आस्था बनाये रखिये रामगंगा नदीके तटपर एक शिवमन्दिर था। उसमें एक पण्डित और एक चोर रोज आते थे। पण्डितजी
भारतवासियोंके समान ही अरब भी अतिथिका सम्मान करनेमें अपना गौरव मानते हैं। अतिथिका स्वागत-सत्कार वहाँ कर्तव्य समझा जाता है। अरबलोगोंकी