
चोरीका दण्ड
ऋषि ‘शब्द’ और ‘लिखित’ दो भाई थे दोनों ही बड़े तपस्वी थे और दोनों ही अलग-अलग आश्रम बनाकर रहते थे।
ऋषि ‘शब्द’ और ‘लिखित’ दो भाई थे दोनों ही बड़े तपस्वी थे और दोनों ही अलग-अलग आश्रम बनाकर रहते थे।
हजरत इब्राहीम जब बलखके बादशाह थे, उन्होंने एक गुलाम खरीदा। अपनी स्वाभाविक उदारता के कारण उन्होंने उस गुलामसे पूछा—’तेरा नाम
पंढरपुरकी कार्तिक-यात्राका मेला लगा था। अनेकों साधु-संत पधारे थे। एकादशीका निर्जल उपवास करके द्वादशीके दिन पारणके लिये सभी उतावले दीख
देवता और दैत्योंने मिलकर अमृतके लिये समुद्र मन्थन किया और अमृत निकला भी; किंतु भगवान् नारायणके कृपापात्र होनेसे केवल देवता
माता सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मणका श्रीरामजीकी सेवाके लिये वन जानेका विचार सुनकर अत्यन्त प्रमुदित हो गयीं। उन्होंने जो कुछ कहा,
एक बार भक्त हरिदासजी सप्तग्रामके जमींदार हिरण्य मजूमदारके यहाँ हरिनामका माहात्म्य वर्णन करते हुए बोले कि ‘ भक्तिपूर्वक हरिनाम लेनेसे
दैत्यराज हिरण्यकशिपु हैरान था जिस विष्णुको मारनेके लिये उसने सहस्रों वर्षतक तपस्या करके वरदान प्राप्त किया, जिस विष्णुने उसके सगे
‘इस संसारके सब प्राणी अपने ही हैं, कोई भी पराया नहीं है। पापी घृणाका पात्र नहीं है, उससे निष्कपट प्रेम
‘आपको अवश्य जाना चाहिये; सिकन्दर उदार है; अभी कल ही उसने पोरस (पुरु) महाराजके साथ राजाका-सा बर्तावकर जो उदारता दिखायी
स्वतन्त्र भारतके अन्तिम नरेश पृथ्वीराज युद्धभूमि में पड़े थे। उन्हें इतने घाव लगे थे कि अपने स्थानसे वे न खिसक