
हाड़-मांसकी देह और मैं
हाड़-मांसकी देह और ‘मैं’ महर्षि रमणकी आयु तब सत्रह वर्षकी रही होगी। एक बार वे अपने काकाके घरकी छतपर सो
हाड़-मांसकी देह और ‘मैं’ महर्षि रमणकी आयु तब सत्रह वर्षकी रही होगी। एक बार वे अपने काकाके घरकी छतपर सो
रँगी लोमड़ी एक लोमड़ी खानेकी तलाशमें एक गाँवमें घुस गयी। वह एक रंगरेजके घरके पिछवाड़े में चली गयी, जहाँपर रंगसे
नाग महाशयकी झोंपड़ी पुरानी हो चुकी थी । उसकी मरम्मत आवश्यक थी। मजदूर बुलाया गया। परंतु जब वह इनके घर
विक्रमीय दसवीं शताब्दीकी बात है । — एक दिन काश्मीर-नरेश महाराज यशस्करदेव अपनी राजसभा बैठकर किसी गम्भीर विषयका चिन्तन कर
श्रावस्ती नगरीके नगरसेठ मिगार भोजन करने बैठे थे। उनकी सुशीला पुत्रवधू विशाखा हाथमें पंखा लेकर उन्हें वायु कर रही थी।
वृन्दावनमें श्रीभट्ट नामक एक महात्मा रहते थे। लोगों का कहना था कि उनकी दोनों जाँघोंपर श्रीराधा कृष्ण आकर बैठा करते
महाराज सगरके साठ सहस्र पुत्र महर्षि कपिलका अपमान करके अपने ही अपराधसे भस्म हो गये थे। उनके उद्धारका केवल एक
प्राचीन अरबनिवासियोंमें हातिम ताईका नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। वह अपनी अमित दातृत्व-शक्ति किंवा सतत दानशीलताके लिये बड़ा विख्यात था। एक
दिल्लीमें अनेक प्रसिद्ध लाला हुए; परंतु जो लालाई लाला महेशदासको नसीब हुई, उसका शतांश भी और किसीके हिस्सेमें नहीं आया।
एक शूद्र अपनी पत्नीके साथ कार्तिकी यात्राके निमित्त पंढरपुर गया उसके साथ उसकी नन्ही सी पुत्री जनी भी थी उत्सव