
सत्य- पालनकी दृढ़ता
अयोध्या नरेश महाराज हरिश्चन्द्रने स्वप्रमें एक ब्राह्मणको अपना राज्य दान कर दिया था। जब वह ब्राह्मण प्रत्यक्ष आकर राज्य माँगने

अयोध्या नरेश महाराज हरिश्चन्द्रने स्वप्रमें एक ब्राह्मणको अपना राज्य दान कर दिया था। जब वह ब्राह्मण प्रत्यक्ष आकर राज्य माँगने

कलकत्तेमें श्रीलक्ष्मीनारायणजी मुरोदिया नामक एक संतस्वभावके व्यापारी थे। एक बार किन्हीं दो भाइयोंमें सम्पत्तिको लेकर आपसमें झगड़ा हो गया और

एक चाँदनी रातमें दैवयोगसे एक भेड़ियेको एक अत्यन्त मोटे-ताजे कुत्तेसे भेंट हो गयी। प्राथमिक शिष्टाचारके बाद भेड़ियेने कहा- ‘मित्र! यह

इब्राहिमसे एक दिन किसीने पूछा- ‘आप तो राजा थे। जगत्के समस्त वैभव आपके चरणों में सिर झुकाते थे। फिर आपने

वृत्रासुरने देवराज इन्द्रके साथ महायुद्ध करते हुए उनसे कहा- ‘देवराज! भगवान् विष्णुने मुझे मारनेके लिये तुम्हें आज्ञा दी है, इसलिये

रानी अहल्याबाई वह रानी थी अहल्याबाई। उस अहल्याबाईने बहुत-से यज्ञ-याग आदि करके एक पुत्र प्राप्त किया। पुत्र नन्हा था। रानी

यह प्रसिद्ध है कि कर्ण अपने समयके दानियोंमें सर्वश्रेष्ठ थे। इधर अर्जुनको भी अपनी दानशीलताका बड़ा गर्व था। एक बार

द्वारकाधीश श्रीकृष्णचन्द्र पाण्डवोंके संधि- दूत बनकर आ रहे थे। धृतराष्ट्रके विशेष आदेशसे हस्तिनापुर सजाया गया था। दुःशासनका भवन, जो राजभवनसे

पहले तोलो, फिर बोलो एक बालक एक ज्ञानी पुरुषके पास गया और उनसे कहा- ‘देव! मैं बहुत पढ़ता हूँ, लिखता

प्राज्ञाः पुरुषकारेषु वर्तन्ते दाक्ष्यमाश्रिताः ॥ विद्वान् कुशलताका आश्रय लेकर परिश्रममें ही लगे रहते हैं। The wise rely on skill in