
भगवत्कथा-श्रवणका माहात्म्य
तत्रैव गङ्गा यमुना च तत्र गोदावरी सिन्धुसरस्वती च । नद्यः समस्ता अप देवखातानमन्तियत्राच्युतसत्कथापराः॥ न कर्मलोपो न च बन्धलेशो न दुःखलेशो
तत्रैव गङ्गा यमुना च तत्र गोदावरी सिन्धुसरस्वती च । नद्यः समस्ता अप देवखातानमन्तियत्राच्युतसत्कथापराः॥ न कर्मलोपो न च बन्धलेशो न दुःखलेशो
सुख के माथे सिल परौ जो नाम हृदय से जाय। बलिहारी वा दुःख की जो पल-पल नाम रटाय ॥ महाभारतका
ईश्वरको कौन जानता है ? (श्रीराघवेश्वरजी भारती ) एक बारकी बात है, एक हाथी तालाबमें नहा रहा था। एक छोटा-सा
दूसरी कथा – आप कौन हैं ? बात उस समयकी है, जब श्रीरामजी सीताजीके साथ एकान्तस्थान में सुखपूर्वक बैठे हुए
वाराणसीके सबसे बड़े सेठका पुत्र यश विलासी और विषय था उसके विहारके लिये ग्रीष्म, हेमन्त और वर्षाकालके तीन अमूल्य प्रासाद
गजनीसे ईरानको एक सड़क जाती है। इस रास्तेपर पहले लुटेरोंका भयंकर अड्डा था और इस मार्गसे कोई भी व्यापारी निरापद
एक महात्मा वृन्दावनके पास वनमें बैठे थे। उनके मनमें आया कि सारी उम्र ऐसे ही बीत गयी, न भगवान् के
महापुरुषोंके प्रति अपराधसे अमंगल ही होता है वृकासुर शकुनिका पुत्र था। उसकी बुद्धि बहुत बिगड़ी हुई थी। एक दिन कहीं
प्राचीनकालमें एक गौतमी नामकी वृद्धा ब्राह्मणी थी। उसके एकमात्र पुत्रको एक दिन सर्पने काट लिया, जिससे वह बालक मर गया।
ऋग्वेद हमें यह शिक्षा देता है कि दूसरोंको श्रद्धापूर्वक देकर अवशिष्ट भागको स्वयं ग्रहण करना चाहिये। ऐसा कभी न करे