
महाशंकर
महाशंकर “वृक्षोंको शंकर क्यों कहते हैं?’ एक पुत्रने पितासे पूछा। पिताने वृक्षमें जल डालते हुए कहा-‘बेटा! समुद्रमन्थन हुआ, तब देव
महाशंकर “वृक्षोंको शंकर क्यों कहते हैं?’ एक पुत्रने पितासे पूछा। पिताने वृक्षमें जल डालते हुए कहा-‘बेटा! समुद्रमन्थन हुआ, तब देव
मैं अपने सारे सम्बन्ध, यौवन और धन आदिका त्यागकर संन्यास लूँगा। प्रवजित होना ही मेरे जीवनका लक्ष्य है।’ मगधदेशीय महातिथ्य
जार्ज मूलरका प्रार्थनामें अटल विश्वास था अपने जीवनमें उन्हें किसी भी दिन निराश नहीं होना पड़ा। एक समयकी बात ।
धर्म तो सदा अभ्युदय ही करता है जब वामन भगवान के आदेशसे उनके पार्षदोंने राजा बलिको बाँध लिया तो ब्रह्माजीने
नाग महाशयका सेवा-भाव तो अद्भुत ही था। एक दिन इन्होंने एक गरीब मनुष्यको अपनी झोपड़ी में भूमिपर पड़े देखा। आप
प्रतिभाकी पहचान यूनानदेशके थ्रेसप्रान्तमें एक निर्धन बालक दिनभर परिश्रम करके जंगलमें लकड़ियाँ काटता, फिर उनका गट्ठर बनाकर शामको बाजारमें बेचता
पहले गौडदेशमें वीरभद्र नामका एक अत्यन्त प्रसिद्ध राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी, विद्वान् तथा धर्मात्मा था। उसकी पत्नीका
अभ्याससे सब कुछ सम्भव राजा भोज अपने मन्त्रीके साथ कहीं दूरकी यात्रा कर रहे थे। रास्तेमें उन्होंने एक किसानको ऊबड़
अनपढ़ होय, सो गये मकर संक्रान्तिके पर्वपर एक अनपढ़ दामाद अपनी ससुराल गया। उसका ससुर खेतपर चला गया था। इस
‘ऊधो! करमन की गति न्यारी’ (स्वामी श्रीशिवानन्दजी वैद्यराज) एक बहुत बड़ा सेठ विपुल सम्पत्ति छोड़कर मरा था। उसका एकमात्र पुत्र