
अकालपीड़ितोंकी आदर्श सेवा
एक बार धामणगाँवमें बहुत बड़ा अकाल पड़ा। अ लोग अन्नके लिये तड़प-तड़पकर मर रहे थे। गाँवके पटवारी माणकोजी बोधलासे यह
एक बार धामणगाँवमें बहुत बड़ा अकाल पड़ा। अ लोग अन्नके लिये तड़प-तड़पकर मर रहे थे। गाँवके पटवारी माणकोजी बोधलासे यह
विनम्रता फटे कपड़े पहने धीरे-धीरे कदम रखते हुए बका-सा एक बूढ़ा रेस्त्राके अन्दर आया। किसी बेटा उसकी ओर ध्यान नहीं
हिष्मक राष्ट्रमें सुकुल नामका एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। नगरके पास ही एक व्याध पक्षियोंको फँसाकर उन्हें बेचकर अपनी
बादशाह अकबर राजधानीसे बाहर निकले थे। अनेक बार एक-दो विद्वानोंको साथ लेकर बिना किसी धूम -घड़ाके और आडम्बरके प्रजाकी दशाका
‘सीख वाको दीजिये , (डॉ0 चक्षुप्रभाजी, एम0ए0, पी-एच0डी0) फाल्गुनका महीना चल रहा था। ठण्डी ठण्डी हवाके साथ धीमी-धीमी बूँदें भी
संस्कार-सुरभित प्रेरक-प्रसंग प्रसन्नताका नुसख़ा एक संत किसी टीलेपर बैठे सूर्यास्त देख रहे थे। तभी एक सेठजी उनके पास आये। वे
माधुर्यका रहस्य- केवल संग्रह मत करो पथिकने सरितासे पूछा, ‘सरिते! तू इतनी छोटी है, किंतु तेरा जल कितना मधुर तथा
एक दिन एक घमंडी युवकने इंगलैंडकी महारानी एलिजाबेथके आदरभाजन तथा प्रख्यात शूर सर वॉल्टर रैलेको द्वन्द्वयुद्धकी चुनौती दी। उस समय
गौतम नामका एक ब्राह्मण था ब्राह्मण वह केवल अर्धमें था कि ब्राह्मण माता-पितासे उत्पन्न हुआ था, इस अन्यथा था वह
श्री ताराकान्त राय बंगालके कृष्णनगर राज्यके उच्च पदपर नियुक्त थे। नरेश उन्हें अपने मित्रकी भाँति मानते थे। बहुत समयतक तो