
मैत्री निर्वाह
(1) पाण्डव बारह वर्षका वनवास तथा एक वर्षका अज्ञातवास पूर्ण कर चुके थे। वे उपप्लव्य नगर में अब अपने पक्षके
(1) पाण्डव बारह वर्षका वनवास तथा एक वर्षका अज्ञातवास पूर्ण कर चुके थे। वे उपप्लव्य नगर में अब अपने पक्षके
पाँचवें नम्बरकी विजेता टीचरने सीटी बजायी और स्कूलके मैदानपर पचास छोटे-छोटे बालक-बालिकाएँ दौड़ पड़े। सबका एक लक्ष्य। मैदानके छोरपर पहुँचकर
एक अयाची वृत्तिके महात्मा काशी गये। सुबहसे शाम हो गयी, पर न तो उन्होंने किसीसे कुछ माँगा और न कुछ
महापुरुषोंके प्रति किये गये अपराधका दुष्परिणाम आंगिरस गोत्रमें उत्पन्न एक सद्गुणसम्पन्न सदाचारी विद्वान् ब्राह्मण थे। उन्होंके यहाँ जड़भरतका जन्म हुआ
एक लड़की थी। एक दिन उसने एक पण्डितजीको कथा कहते हुए सुना कि ‘भगवान्का एक नाम लेनेसे मनुष्य दुस्तर भवसागरसे
एक धनी सेठने सोनेसे तुलादान किया। गरीबोंको खूब सोना बाँटा गया। उसी गाँवमें एक संत रहते थे। सेठने उनको भी
कर भला, तो हो भला बेंजामिन फ्रैंकलिनने एक धनी व्यक्तिकी मेजपर बीस डॉलरकी सोनेकी गिन्नी रखते हुए कहा- ‘आपने बिगड़े
सत्यको न समझ पानेकी आत्मघाती विडम्बना किसी गाँव कन्फ्यूशियस शिष्यसहित पधारे। गाँवकेपाँच युवक एक अन्धेको पकड़कर उनके पास लाये। उनमेंसे
संत खैयास अपने शिष्यके साथ वनमें जा रहे थे। नमाजका समय हुआ और झरनेके पानीसे ‘वजू’ करके दोनोंने चद्दर बिछायी,
किसी ग्राममें एक विद्वान् स्त्री-पुरुष तथा उनके दो बच्चे रहते थे। बड़ा लड़का शान्त स्वभावका, पठनशील और विचारप्रिय था। छोटा