
नाग महाशयकी साधुता
परमहंस रामकृष्णदेवके भक्त शिष्य डा0 दुर्गाचरण नाग आदर्श पुरुष । एक समय वे अपने देशमें थे। पुआलसे छाये हुए घरकी
परमहंस रामकृष्णदेवके भक्त शिष्य डा0 दुर्गाचरण नाग आदर्श पुरुष । एक समय वे अपने देशमें थे। पुआलसे छाये हुए घरकी
करमान देशके राजा बड़े भक्त और ईश्वर विश्वासी थे। उनके एक परम भक्तिमती सुन्दरी कन्या थी। राजाने निश्चय किया था
एक सज्जन बड़े ही दानी थे, उनका हाथ सदा ही ऊँचा रहता था; परंतु वे किसीकी ओर नजर उठाकर देखते
प्राचीन समयकी बात है। सिंहकेतु नामक एक पञ्चालदेशीय राजकुमार अपने सेवकोंको साथ लेकर एक दिन वनमें शिकार खेलने गया। उसके
नींवके पत्थर बात सन् 1928-29 ई0की है। लालबहादुर शास्त्री लोक-सेवक मण्डलकी जिम्मेदारियाँ लेकर इलाहाबाद पहुँचे। छोटा कद, दुबली-पतली काठी, सिरपर
भटके नवयुवकोंकी सँभाल मद्राससे दो भले घरोंके लड़के घर छोड़कर बम्बई चले जाते हैं। क्यों? ईसाई बन जायँगे। बम्बईसे मिशनरी
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरघुनाथजीको पता लगा कि उनके परम भक्त विभीषणको कहीं ब्राह्मणोंने बाँध लिया है। श्रीराघवेन्द्रने चारों ओर दूत भेजे,
नशापुरमें एक व्यापारी था। वह धन कमानेमें निरन्तर लगा रहता था। अच्छे और बुरे कर्मसे उसे कुछ लेना-देना नहीं था।
सन्तानका विद्यारम्भ कब हो ? एक दिन एक महिलाने गुरुजीके समीप जाकर पूछा-‘हे गुरुदेव मेरे प्रिय पुत्रकी शिक्षा कबसे और
परमहंस रामकृष्णदेव गङ्गा-किनारे बैठ जाते थे एक ओर रुपये-पैसोंका ढेर लगाकर और एक ओर कंकड़ोंकी ढेरी रखकर एक मुट्ठीमें पैसे