भटके नवयुवकोंकी सँभाल
भटके नवयुवकोंकी सँभाल मद्राससे दो भले घरोंके लड़के घर छोड़कर बम्बई चले जाते हैं। क्यों? ईसाई बन जायँगे। बम्बईसे मिशनरी
भटके नवयुवकोंकी सँभाल मद्राससे दो भले घरोंके लड़के घर छोड़कर बम्बई चले जाते हैं। क्यों? ईसाई बन जायँगे। बम्बईसे मिशनरी
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरघुनाथजीको पता लगा कि उनके परम भक्त विभीषणको कहीं ब्राह्मणोंने बाँध लिया है। श्रीराघवेन्द्रने चारों ओर दूत भेजे,
नशापुरमें एक व्यापारी था। वह धन कमानेमें निरन्तर लगा रहता था। अच्छे और बुरे कर्मसे उसे कुछ लेना-देना नहीं था।
सन्तानका विद्यारम्भ कब हो ? एक दिन एक महिलाने गुरुजीके समीप जाकर पूछा-‘हे गुरुदेव मेरे प्रिय पुत्रकी शिक्षा कबसे और
परमहंस रामकृष्णदेव गङ्गा-किनारे बैठ जाते थे एक ओर रुपये-पैसोंका ढेर लगाकर और एक ओर कंकड़ोंकी ढेरी रखकर एक मुट्ठीमें पैसे
द्वापरान्तमें उज्जैनमें शिखिध्वज नामके नरेश थे। उनकी पत्नी चूडाला सौराष्ट्र नरेशकी कन्या थीं। रानी चूडाला बड़ी विदुषी थीं। युवावस्था दिनोंदिन
एक राजाके यहाँ एक संत आये। प्रसङ्गवश बात चल पड़ी हककी रोटीकी। राजाने पूछा- ‘महाराज ! हककी रोटी कैसी होती
एक पुलिसके सीनियर सुपरिंटेंडेंट अंग्रेज सज्जन थे। एक बार उनपर कोई संकट आया। एक ब्राह्मण चपरासीने उनसे कहा-‘सरकार! गणेशजी सिद्धिदाता
बाजीराव प्रथम उर्फ बाजीराव बल्लाल पेशवा और निजाम उल मुल्कके बीच सन् 1728 में गोदावरीके किनारे लड़ाई हुई। मराठे जीत
एक शिष्यने अपने गुरुसे पूछा- ‘भगवन्! भगवत्प्राप्तिके लिये किस प्रकारकी व्याकुलता होनी चाहिये ?’ गुरु मौन रहे। शिष्य भी उनका