
आत्मज्ञानसे ही शान्ति
द्वापरान्तमें उज्जैनमें शिखिध्वज नामके नरेश थे। उनकी पत्नी चूडाला सौराष्ट्र नरेशकी कन्या थीं। रानी चूडाला बड़ी विदुषी थीं। युवावस्था दिनोंदिन
द्वापरान्तमें उज्जैनमें शिखिध्वज नामके नरेश थे। उनकी पत्नी चूडाला सौराष्ट्र नरेशकी कन्या थीं। रानी चूडाला बड़ी विदुषी थीं। युवावस्था दिनोंदिन
एक राजाके यहाँ एक संत आये। प्रसङ्गवश बात चल पड़ी हककी रोटीकी। राजाने पूछा- ‘महाराज ! हककी रोटी कैसी होती
एक पुलिसके सीनियर सुपरिंटेंडेंट अंग्रेज सज्जन थे। एक बार उनपर कोई संकट आया। एक ब्राह्मण चपरासीने उनसे कहा-‘सरकार! गणेशजी सिद्धिदाता
बाजीराव प्रथम उर्फ बाजीराव बल्लाल पेशवा और निजाम उल मुल्कके बीच सन् 1728 में गोदावरीके किनारे लड़ाई हुई। मराठे जीत
एक शिष्यने अपने गुरुसे पूछा- ‘भगवन्! भगवत्प्राप्तिके लिये किस प्रकारकी व्याकुलता होनी चाहिये ?’ गुरु मौन रहे। शिष्य भी उनका
प्रह्लादने गुरुओंकी बात मानकर हरिनामको न छोड़ा, तब उन्होंने गुस्सेमें भरकर अग्रिशिखाके समान प्रज्वलित शरीरवाली कृत्याको उत्पन्न किया। उसअत्यन्त भयंकर
भगवान् बुद्ध किसी जन्ममें भैंसेकी योनिमें थे। जंगली भैंसा होनेपर भी बोधिसत्त्व अत्यन्त शान्त थे उनके सीधेपनका लाभ उठाकर एक
एक बार भक्त चतुर्भुजदासजी अपने गुरुके साथ | ; कहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे थे। पर उनका मन जानेका नहीं
ईमानदारीकी कमाई सन्त अबू अली शफीक रोजाना कुछ देर मजदूरी करते और उससे अपने भोजनकी व्यवस्था करते। एक धनवान् व्यक्ति
जिन दिनों महाराज युधिष्ठिरके अश्वमेध यज्ञका उपक्रम चल रहा था, उन्हीं दिनों रत्नपुराधीश्वर महाराज मयूरध्वजका भी अश्वमेधीय अश्व छूटा था,