तू बड़ा बुद्धू है, मोहनदास!
तू बड़ा बुद्धू है, मोहनदास! गाँधीजी, मोहनदास गाँधी तब कोई तेरह सालके थे। राजकोटके अल्फ्रेड हाईस्कूलमें पढ़ रहे थे। हाईस्कूल
तू बड़ा बुद्धू है, मोहनदास! गाँधीजी, मोहनदास गाँधी तब कोई तेरह सालके थे। राजकोटके अल्फ्रेड हाईस्कूलमें पढ़ रहे थे। हाईस्कूल
एक फूँककी दुनिया एक बड़े विरक्त, त्यागी सन्त थे । एक व्यक्ति उनका शिष्य हो गया। वह बहुत पढ़ा-लिखा था
उपकार मानो, एहसान न जताओ भूदेव बाबू कोलकाताके जाने-माने समाजसेवी थे। वे भगवान् शंकरके परम भक्त थे। गरीबों असहायोंकी भरपूर
मिथिला नरेश महाराज जनककी सभामें शास्त्रोंके मर्मज्ञ सुप्रसिद्ध विद्वानोंका समुदाय एकत्र था। अनेक वेदज्ञ ब्राह्मण थे। बहुत-से दार्शनिक मुनिगण थे।
राजा जनकने पञ्चशिख मुनिसे वृद्धावस्था और मृत्युसे बचनेका उपाय पूछा। तब पञ्चशिखने कहा- ‘कोई भी मनुष्य जरा और मृत्युसे नहीं
वृन्दावनमें श्रीभट्ट नामक एक महात्मा रहते थे। लोगों का कहना था कि उनकी दोनों जाँघोंपर श्रीराधा कृष्ण आकर बैठा करते
महाराज सगरके साठ सहस्र पुत्र महर्षि कपिलका अपमान करके अपने ही अपराधसे भस्म हो गये थे। उनके उद्धारका केवल एक
अनपढ़ होय, सो गये मकर संक्रान्तिके पर्वपर एक अनपढ़ दामाद अपनी ससुराल गया। उसका ससुर खेतपर चला गया था। इस
और अमरा अदृश्य हो गया !..” ‘बचाओ, बचाओ’ वेदनाभरी पुकार सुनते ही दादू मियाँने लकड़ीका बोझा अलग रख दिया। घने
प्यालीमें सागर भरनेकी चाह यूनानी सन्त आगस्टिनस एक सुबह सागरके तटपर अकेले ही घूमने निकल पड़े। तबतक सूर्योदय हो गया