
भगवान का काम
एक बार एक राजा ने अपने दरबारी मंत्रियों से पूछा, प्रजा के सारे काम मे करता हूँ, उनको अन्न में

एक बार एक राजा ने अपने दरबारी मंत्रियों से पूछा, प्रजा के सारे काम मे करता हूँ, उनको अन्न में

भरत जी का कितना अथाह प्रेम था जिसको शब्दों में परिणत करना असंभव सा है । दासत्व भाव में कितना

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं….जीवात्मा का विनाश करने वाले “काम, क्रोध और लोभ” यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को

एक भक्त की कर्म प्रधान साधना हैं। भक्त कर्म करते हुए जितना आनंद विभोर होता है । कर्म करते हुए

राधा रानी की शक्ति गोवर्धन लीला के बाद समस्त ब्रजमंडल के कृष्ण के नाम की चर्चा होने लगी, सभी ब्रजवासी

कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर में चल रहे पति

मत डर प्यारे ! आ, आ, मेरे पास आ। देख ! एक बार नहीं, युग–युगांतर से पुकारता आ रहा हूंँ—

जब प्रभु ने पूछा: “क्या तुम संतुष्ट हो एक दिन की बात है — एक साधारण सी भक्ति करने वाली

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥आनन रहित सकल रस भोगी।बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ अर्थ

अजर अमर गुणनिधि सुत होहू। जानकी माता ने कहा कि हनुमान एक बात बताओ बेटा तुम्हारी पूंछ नहीं जली आग