
मानो मत जानो
भगवान, कहावत है, ‘मानिए तो देव, नहीं तो पत्थर।’ क्या सब मानने की ही बात है? मैं कहावत को

भगवान, कहावत है, ‘मानिए तो देव, नहीं तो पत्थर।’ क्या सब मानने की ही बात है? मैं कहावत को

तत्त्व के साक्षात्कार के लिए सम्पूर्ण प्रयास होते हैं। तत्त्व जिज्ञासा होने के बाद ही श्रवण-मननादि होता है और भगवत्तत्त्व

बताया गया है शास्त्रों में की इस जीवात्मा को तब तक जन्म लेने पड़ते हैं जब तक उन्हें भगवान का

ऐ आत्मा! ये शरीर तेरा घर नहीं है। ऐ आत्मा! तुझे परम तत्व परमात्मा से साक्षात्कार करना है। ऐ आत्मा,

एक फकीर नानक के पास आया और उसने कहा कि मैंने सुना है कि तुम चाहो तो क्षण में मुझे

आज का युग भौतिक पदार्थों में खुशी ढुंढता है। वह बाहर की खुशी के साथ जीवन जीते हैं उनकी कल्पना

किसे कहते है आभामंडल-औरा -प्रभामंडल-प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है “सदैव बहने वाली हवा”।

ध्यान अ-मन की अवस्था है। ध्यान बिना किसी विचार के शुद्ध चेतना की स्थिति है। साधारणता, तुम्हारी चेतना, कचरे से

नामदेव उन्हें ढूंढते हुए शिव मंदिर में पहुँचे।वहाँ देखा तो विसोबा खेचर शिवलिंग पर पाँव पसार कर सोए हुए थे।नामदेव

जीव जब ईश्वर के सम्मुख हो जाता है उसी क्षण जीव के सारे जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं,ईश्वर,