आनन्द
आनंद का प्राकट्य तभी होता है।जब साधक अन्तर्मन में परम पिता परमात्मा को बैठा लेता है। परमात्मा में लीन शरीर
आनंद का प्राकट्य तभी होता है।जब साधक अन्तर्मन में परम पिता परमात्मा को बैठा लेता है। परमात्मा में लीन शरीर
।। जय श्रीराम जय जय हनुमान ।। प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का निवास है। इस घट-घट वासी परमात्मा का जो
हे ज्योतिर्मय! हमारा प्रणाम स्वीकार हो। हे प्रभु मनुष्य अपनी जीवनयात्रा में आवश्यकताओं, इच्छाओं में बंधा रहता है। जिनके कारण
आज का आध्यात्मिक विचार परीक्षा, प्रतीक्षा, समीक्षा भक्त के जीवन प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा में ही बीतना चाहिए क्योंकि यदि
अध्यात्म में आज हर इंसान यह मानता है की उसे सब पता है और वो सबको अपना ज्ञान बांटना चाहता
ज्ञान कोई नहीं देता है। ज्ञान प्राप्त कर के क्या करोगे जीवन अर्पण करो तब कुछ हो एक एक सांस
।। जय भगवान श्री सूर्यनारायण ।। मानव के उद्भव से सम्बंधित उल्लेख श्रुति (वेद) में मिलता है। स्वर्गादि उच्च लोक,
अष्टावक्र इतने प्रकाण्ड विद्वान थे कि माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी “कहोड़” को अशुद्ध वेद पाठ करने के
दिपावली पर मन मन्दिर सजाएंगे। हमारे मन की पवित्रता ही दिपावली है शान्ति ही अयोध्या नगरी है। हमे मन मन्दिर
‘हे भारत ! तू सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण जा, उसकी कृपा से तू परम शान्ति को, अविनाशी स्थान