अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

खोज

हमारा मन तङफ रहा है दिल भाव चाहता है भाव बनते नहीं है। हम खोज रहे हैं हमे खोज का

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सब परमात्मा हैं

! श्रीं हरि:!भगवान् कहते हैं – मैं ही अनेक रूप से हो गया । तो वासुदेव: सर्वम् । वास्तव में

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साधक स्थिर है

साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए

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आत्मा ईश्वर है

एक दिन साधक के हृदय में प्रशन उठता है आत्म बोध आत्मज्ञान क्या है , आत्म स्वरूप कैसे होता है।

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पकङ मजबूत रखे

हम सब पुराने किये हुए पर ही मन बहलाते है हम भी मनुष्य रूप में आये हैं हममे भी चिन्तन

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जागते रहे

होश होतो दूसरा न तो कल्याणकारी हैऔर न अकल्याणकारी;होश हो तो आप सभी जगह से अपनेकल्याण को खींच लेते हैं।वहीं

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