
भवसागर पार
ठाकुर जी की नाव भवसागर के पार जा रही थी।ठाकुर जी ने कहा :- जिसे बैठना हो बैठ जाए।अब हम
ठाकुर जी की नाव भवसागर के पार जा रही थी।ठाकुर जी ने कहा :- जिसे बैठना हो बैठ जाए।अब हम
एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे, रास्ते
वृंदावन के पास एक गाँव में भोली-भाली माई ‘पंजीरी’ रहती थी। दूध बेच कर वह अपनी जीवन नैया चलाती थी।
वृन्दाबन साँचौ धन भैया।कनक कूट कौटिक लगि तजिए, भजिये कुँवर कन्हैयाँ॥जहाँ श्री राधा चरनरेनु की कमला लेत बलैय्या।तिन को गोपी
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए | कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये | ज्योति दीप मन होय
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे | नाचे दुनिया सारी, आनंद रस बरसे रे || नटखट नटखट हैं नंदनागर,
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है गृहस्थ जीवन में भी भक्त मेरी भक्ति कर सकता है। गृहस्थ में रहते हुए माता,
बैठे नजदीक तू सँवारे के तार से तार जुगने लगेगा,देख नजरो से नजरे मिला के तुमसे बाते ये करने लगेगा,बैठे
उड़ीसा में बैंगन बेचनेवाले की एक बालिका थी | दुनिया की दृष्टि से उसमें कोई अच्छाई नहीं थी | न
जो शान्त भाव से उपासना करते हैं, उनके लिये केवल श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यमय रूप प्रकाशित होकर रह जाता है। उन्हें