
राम परम चेतना का, ईश्वर का नाम है
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़ै बन माहि।ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।। संत कबीर के इस दोहे का अर्थ
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़ै बन माहि।ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।। संत कबीर के इस दोहे का अर्थ
हे परमात्मा जी मै कहती। भगवान् देख रहा है। मै जब भीघर में कार्य करती मेरा अन्तर्मन पुकारता भगवान् देखरहा
।। ।। भगवान् शिव से बड़ा कोई भगवान विष्णु का भक्त नहीं और भगवान् विष्णु से बड़ा कोई शिव का
जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ।। भावार्थ-जैसे कोई नट (खेल करने
सैर करन को चली गोरा जीनारद मुनि ने दी मती, कहे गोरा जी हमें सुना दो, अमर कथा शिव मेरे
जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता
हे हिम हेम किरीट शुभ्र शिव,वर निर्झर त्रिपुरारी।कर पन्नग,पन्नग ग्रीवा,सिरवर्द्धमान शशि धारी।। मस्तक मध्य त्रिलोचन शोभित,उर शोभित रघुनायक।वक्ष मुण्ड,कर शूल
रामनवमी के नौ राम, परमात्मा से राजा, पुत्र से पिता और पति तक भगवान राम के नौ रुप जो सिखाते
माता यशोदा वात्सल्य प्रेम की साकार मूर्ति हैं। परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र की नित्यलीला में वे नित्य माता है।
मीरा जब वृंदावन पहुंची तो वृंदावन में जो कृष्ण का सबसे प्रमुख मंदिर था, उसका जो पुजारी था, उसने तीस