
जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा।
॥ दोहा ॥बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम,राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥कीरति गाथा जो पढ़ें
॥ दोहा ॥बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम,राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥कीरति गाथा जो पढ़ें
ॐ श्रीरामजयम्। ॐ भूमिपुत्र्यै च विद्महे, रामपत्न्यै च धीमहि। तन्नः सीता प्रचोदयात्।। सीता श्रीरामसज्जाया सानन्दवाक्स्वरूपिणी।सा सम्पूर्णसुमाङ्गल्या ज्वलदग्निशुचिस्फुरा।।१।। मदम्बा श्रीमहालक्ष्मीर्मच्चित्तविलसत्प्रभा।क्षमागुण्यातिसान्त्वा मा
सोमवार, 5 मई, 2025विक्रमी संवत 2082, शक संवत 1947‘वैशाख माह’ शुक्ल पक्षनक्षत्र: अश्लेषाराहु कालम: 7:17 प्रातः से 8:57 प्रातःअष्टमी/नवमी तिथिमां
ब्रह्मा विष्णु करें आरती, शंकर गाएं गाथासुर रक्षिणी असुर भक्षणी,जय हो सीता माता आदि अनादि जगदंबा तुम, अखिल विश्व की
परमपिता ब्रह्मा ने परमात्मा परंब्रह्म शिव की इस स्तोत्र द्वारा उपासना की थी। इसीलिए इस स्तोत्र को ब्रह्मा कृत माना
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जांके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप ॥ सरस्वती के भंडार की,
नित्त ध्यान धरूं चित्त से हित से,उर गोविन्द के गुण गाया करूँ।वृंदावन धाम में श्याम सखा,मन ही मन में हरषाया
मृदुल भाषिणी राधा राधासौंदर्य राषिणी राधा राधा परम पुनीता राधा राधानित्य नवनीता राधा राधा रास विलासिनी राधा राधादिव्य सुवासिनी राधा
शिव रूद्र अभिषेक एक बहुत ही उत्तम स्तोत्र जो महाभारत के द्रोणपर्व में अर्जुन द्वारा रचित है। इसी स्तोत्र के
प्रभु राम की महीमा को हनुमान ने जाना है ये राम का सेवक है, यह राम दीवाना है प्रभु राम