
साँच बराबर तप नहीं
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जांके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप ॥ सरस्वती के भंडार की,
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जांके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप ॥ सरस्वती के भंडार की,
नित्त ध्यान धरूं चित्त से हित से,उर गोविन्द के गुण गाया करूँ।वृंदावन धाम में श्याम सखा,मन ही मन में हरषाया
मृदुल भाषिणी राधा राधासौंदर्य राषिणी राधा राधा परम पुनीता राधा राधानित्य नवनीता राधा राधा रास विलासिनी राधा राधादिव्य सुवासिनी राधा
शिव रूद्र अभिषेक एक बहुत ही उत्तम स्तोत्र जो महाभारत के द्रोणपर्व में अर्जुन द्वारा रचित है। इसी स्तोत्र के
प्रभु राम की महीमा को हनुमान ने जाना है ये राम का सेवक है, यह राम दीवाना है प्रभु राम
सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनुगहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।कह तुलसिदास सेवत
राम जन्म चोपाई मै स्वर्ण भूमि का कण -कण सारा, राम जन्म से मन है हर्षाया ।परम अयोध्या सरयू बहती,
मैं माला फेरू रे बजरंगी थारे नाम की।मैं माला फेरू रे बजरंगी थारे नाम की। बजरंगी थारे नाम की, बाला
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,सब दुख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया । मीरा पुकारी रे गिरिधर गोपाला,ढल गया
श्री राम जय राम जय जय राम- यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र