जाके प्रिय न राम-बदैही
जाके प्रिय न राम-बदैही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥ तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी। बलि
जाके प्रिय न राम-बदैही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥ तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी। बलि
सनातन ताल से ताल मिलाराम जी का धनुष बाण शिवजी का डमरू, कान्हा की बंसी ओ राधा के घुंघरूजो भुले
तय कर लो अब सत्य सनातन, की छाया हो शासन पर, राम भक्त ही राज करेगा, दिल्ली के सिंहासन पर,
मैं भी बोलूं राम तुम भी बोलो ना, राम है अनमोल मुख को खोलो ना ॥ तू मृत्यु लोक में
नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून।अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून॥ शून्य के पहले
मेरी चौखट पे चल के आजचारो धाम आये हैंबजाओ ढोल स्वागत मेंमेरे घर राम आये हैं कथा शबरी की जैसेजुड़
राम शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना जैसे अपने मार्ग से भटका हुआ कोई पथिक
जपो राम राम भजो राम राम,दुखी मन को मिलेगा आराम,जिस घडी काम कोई ना आये,उस घड़ी राम आएंगे काम,जपो राम
श्री राम लक्ष्मण व सीता सहित चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे ! राह बहुत पथरीली और कंटीली थी
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी।जिमि बालक राखइ महतारी॥ प्रभु श्री राम देवर्षि नारदजी को समझाते हुए कहते हैं कि..हे मुनि!