हे रोम रोम मे बसने वाले राम
हे रोम रोम मे बसने वाले राम जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मै तुझ से क्या मांगूं आश का बंधन
हे रोम रोम मे बसने वाले राम जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मै तुझ से क्या मांगूं आश का बंधन
आनंद का प्राकट्य तभी होता है।जब साधक अन्तर्मन में परम पिता परमात्मा को बैठा लेता है। परमात्मा में लीन शरीर
🚩जय श्री सीताराम जी की श्री रामचरित मानस लंका काण्ड दोहा :दुहु दिसि जय जयकार करिनिज जोरी जानि।भिरे बीर इत
तुम आशा विश्वास हमारे ।तुम धरती आकाश हमारे ॥ तात मात तुम, बंधू भ्रात हो,दिवस रात्रि संध्या प्रभात हो ।दीपक
” श्रीगणेशायनम: ! अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे
सारतत्त्व को स्पष्ट करनेवाला सुन्दर वर्णन एक बार राम ने पूछ लिया- हनुमान तुम बता सकते हो कि तुम कौन
काली अंधियारी रात बीत चुकी अब सुर्य वंशी राम का तेज पृथ्वी पर उदय हुआ है राम राज्य कहीं बाहर
राम कथा सब विधि सुखदाई, निर्मल गंगा बहती आई |पावन होता अपना जीवन, मन मंदिर से होता कीर्तन ||मात-पिता हरषाते
सीता सीता पुकारें प्रभु वन में, कभी कलियों में ढूढे कभी उपवन में, पूछे पेड़ों से प्रभु जी सीता देखी
आरती रामलला की कीजै आरती रामलला की कीजै,अपनो जन्म सुफल करि लीजै। अवधपुरी अति रम्य सुहावनि,सरजू तट सुन्दर अति पावनि,निरमल