जिसके घर पर ग्रंथ प्रधान
उसके घर सदा रहते भगवान
ग्रंथ भारतवर्ष की उपलब्धि है। आज कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि किसी किसी के तो यहाँ ग्रंथ ही नहीं है।
ग्रंथ भारतवर्ष की उपलब्धि है। आज कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि किसी किसी के तो यहाँ ग्रंथ ही नहीं है।
हमने गुरु किसलिए बनाया है। गुरू हमारी श्रद्धा और विश्वास के आसन पर विराजमान होते हैं भगवान को भजते हुए
सत्संग से व्यक्ति के जीवन में अलौकिक आध्यात्मिकता का प्रकाश प्रवेश करता है तथा हृदय नैतिकता के आनंद से सरोबार
परम पिता परमात्मा के चिन्तन में हमे अपने मन को लगाना है। हम तो क्या करते हैं कि हम भगवान
आज से लगभग ५० वर्ष पूर्व वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग पर वाराहघाट से आगे एक बगीचे के भीतर
नारद मुनि जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता है।इस पावन पर्व के उपलक्ष्य पर देश भर में
हमारा सौभाग्य है कि हम इस कलिकाल में धरती पर आये हैं। बात यह है की भारत भूमि पर हजारों
दो नैनों में भर प्रितम तुझेखुद ही खुद इतराती हूं रसना ना बोले ना सहीहर धड़कन में हरि को पाती
प्रगटे श्री हरिवंशचन्द्रवर , रसिकन के सरताज ॥घर-घर बन्दनवार साथिये , सम्पत्ति सार सिंगार ।नाचत गावत प्रेम विवश गति, प्रमुदित
भक्त भगवान् के मिलन की अपेक्षा भगवान् के भजन को अधिक प्रिय समझता है। भजन जब जीवन बन