
“भ्रमर गीत पोस्ट – 02
कोई गोपी उद्धव पर व्यंग्य करती है। मथुरा के लोगों का कौन विश्वास करे? उनके तो मुख में कुछ
कोई गोपी उद्धव पर व्यंग्य करती है। मथुरा के लोगों का कौन विश्वास करे? उनके तो मुख में कुछ
एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और
एक संत थे …….. वे अपने ठाकुर “श्रीगोपीनाथ” की तन्मय होकर सेवा-अर्चना करते थे।.उन्होंने कोई शिष्य नहीं बनाया था परन्तु
एक बार तुलसी दास जी वृन्दावन आये वहॉ पर वह नित्य ही कृष्ण स्वरूप श्री नाथ जी के दर्शन को
जीभ से निरन्तर भगवान्का नाम लीजियेभगवान ने कहा है–‘सभी धर्मों का आश्रय छोड़कर केवल एकमात्र मेरी शरणमें चले आओ। फिर
पता नहीं ये सामने वाला सेठ हफ्ते में 3-4 बार अपनी चप्पल कैसे तोड़ लाता है?” मोची बुदबुदाया,नजर सामने की
मन में लोभ बिठाकर परमात्मा को ध्यान सिमरण और मनन करेगें। तो मन को कुछ प्राप्त नहीं होगा। प्रेम में
भगवान् ने हमे पुरण बनाया है भगवान ने मानव जीवन दीया हैं । उस के साथ साथ मानव के खाने
भगवान नाम, भजन कीर्तन में प्रेम विस्वास और श्रद्धा छीपी हुई है। प्रेम विस्वास श्रद्धा और आन्नद हमे बाहरी बाजार
शबरी की जाति कौन सी ऊंची थी,सुदामा के पास धन कहां था,कुब्जा का रूप सुंदर कहां था,ध्रुव तब कौन सा