
पंचाध्यायी–महारासलीला पोस्ट – 04
भगवान् का प्रकट होकर गोपियों को सान्त्वना देना भगवान की प्यारी गोपियाँ विरह के आवेश में इस प्रकार भाँति-भाँति से

भगवान् का प्रकट होकर गोपियों को सान्त्वना देना भगवान की प्यारी गोपियाँ विरह के आवेश में इस प्रकार भाँति-भाँति से

श्रीहरिःघडी रात गये कुछ ग्रामीण माताएँ आयी और दो भोग-थाल निवेदन करती हुई बोली – आज़ हमारे यहाँ भगवान की

मित्रतापरमात्मा का वरदान हैएक खिलावट हैनिर्दोष सपनों, अहसासों, मुस्कानों की.वह निरुद्देश्य बहती ज़िंदगी की नदी है।और जो भी उसके किनारे

एक बार तुलसी दास जी वृन्दावन आये वहॉ पर वह नित्य ही कृष्ण स्वरूप श्री नाथ जी के दर्शन को

एक गाँव में भोला केवट रहता था। वह भोला ही था इसी से उसका नाम भोला पड़ गया था। कोई

*एक साधु भिक्षा लेने एक घर में गये । उस घर में माई भोजन बना रही थी और पास में

अंतर्मन में श्याम बसें,!! धड़कन में राधा रानी हो !!निज साँस की उथल पुथल में, मुरली की तान सुहानी हो

प्रेम का उपवन बिखेर धरा परकण-कण में स्नेह-पुष्प खिला दोश्री भगवान पतझड़ झाड़ की नींव हटा कर। प्यार विश्वास की

पुराने समय की बात है। उस समय संत महापुरुष घूमते फिरते किसी किसी स्थान पर महीने दो महीने के लिए

पंडित श्री रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे | एक दिन जब वो अपने विद्यार्थिओं को