तुलसी दास जी वृन्दावन आये
एक बार तुलसी दास जी वृन्दावन आये वहॉ पर वह नित्य ही कृष्ण स्वरूप श्री नाथ जी के दर्शन को
एक बार तुलसी दास जी वृन्दावन आये वहॉ पर वह नित्य ही कृष्ण स्वरूप श्री नाथ जी के दर्शन को
एक गाँव में भोला केवट रहता था। वह भोला ही था इसी से उसका नाम भोला पड़ गया था। कोई
*एक साधु भिक्षा लेने एक घर में गये । उस घर में माई भोजन बना रही थी और पास में
अंतर्मन में श्याम बसें,!! धड़कन में राधा रानी हो !!निज साँस की उथल पुथल में, मुरली की तान सुहानी हो
प्रेम का उपवन बिखेर धरा परकण-कण में स्नेह-पुष्प खिला दोश्री भगवान पतझड़ झाड़ की नींव हटा कर। प्यार विश्वास की
पुराने समय की बात है। उस समय संत महापुरुष घूमते फिरते किसी किसी स्थान पर महीने दो महीने के लिए
पंडित श्री रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे | एक दिन जब वो अपने विद्यार्थिओं को
तुम संग ब्याह के लिएफेरो की जरूरत कहां,,,?समर्पण हो सच्चा ,तो रिश्ता रहे कैसे कच्चा,, तुम्हारी सुहागिन के लिएसिंदूर की
महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम
ग्यारस का ये दिन अति पावनश्यामधणी संग भक्तों के है मनभावनबाबा की चौखट पर बरसे कितनी ही अंखियां ज्यूँ आसमां