
भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं
आज का भगवद चिंतन।भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं कि इस भौतिक संसार के प्रत्येक पदार्थ में मैं
आज का भगवद चिंतन।भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं कि इस भौतिक संसार के प्रत्येक पदार्थ में मैं
🕉 नम: शिवायश्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमःॐ श्री काशी विश्वनाथ विजयते सर्वविपदविमोक्षणम् मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदंपदं विष्णोर्भ्राम्यद् भुज-परिघ-रुग्ण-ग्रह-गणम्। मुहुर्द्यौर्दौस्थ्यं यात्यनिभृत-जटा-ताडित-तटाजगद्रक्षायै
मेरे सांवरे नित्त ध्यान धरूँ चित्त से हित से,उर गोविन्द के गुण गाया करूँ।वृंदावन धाम में श्याम सखा,मन ही मन
नमामीशमीशान निर्वाणरूपंविभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहंचिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।१।। अर्थ-हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर
ऐसो कब करिहो प्रिया-प्रीतमनिशदिन टहल महल चित्त लाऊँ ।सुन्दर सरस स्वरूप माधुरीअनिमिष अचवत नैन सिराऊँ ॥नव-सत नव श्रृंगार मनोहरसुभग अंग
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। मनोजवं मारुततुल्यवेगमजितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।वातात्मजं वानरयूथमुख्यंश्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।। श्रीरामभक्त हनुमानजी साक्षात एवं जाग्रत देव हैं।
हे शिव आपको हमारा बारम्बार प्रणाम है बारम्बार प्रणाम हे अजन्मा अनादि सत्त – चित आनंद हे करूणानिधान सच्चिदानंद सर्व
।। श्लोक-शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिंवन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्।। अर्थ-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप,
यह स्तोत्र स्वयं सिद्ध अनुभूत तथा अचूक है। अति गोपनीय स्तोत्र का जीवन में प्रयोग करें और अत्यंत चमत्कारिक लाभ
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।। भावार्थ- ‘हे भगवान! तुम्हीं माता