प्रार्थना (Prarthna)

*रुद्राष्टकम्*

नमामीशमीशान निर्वाणरूपंविभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहंचिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।१।। अर्थ-हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर

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ऐसो कब करिहो प्रिया-प्रीतम

ऐसो कब करिहो प्रिया-प्रीतमनिशदिन टहल महल चित्त लाऊँ ।सुन्दर सरस स्वरूप माधुरीअनिमिष अचवत नैन सिराऊँ ॥नव-सत नव श्रृंगार मनोहरसुभग अंग

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हनुमत वंदन

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। मनोजवं मारुततुल्यवेगमजितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।वातात्मजं वानरयूथमुख्यंश्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।। श्रीरामभक्त हनुमानजी साक्षात एवं जाग्रत देव हैं।

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शिव स्तुति

हे शिव आपको हमारा बारम्बार प्रणाम है बारम्बार प्रणाम हे अजन्मा अनादि सत्त – चित आनंद हे करूणानिधान सच्चिदानंद सर्व

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जय महावीर हनुमान जी प्रार्थना

।। श्लोक-शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिंवन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌।। अर्थ-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप,

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जय श्री हरि

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।। भावार्थ- ‘हे भगवान! तुम्हीं माता

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।। श्रीहनूमत्स्मरणम् ।।

प्रातः स्मरामि हनुमन्तमनन्तवीर्यंश्रीरामचन्द्रचरणाम्बुज चञ्चरीकम्।लङ्कापुरीदहननन्दितदेववृन्दंसर्वार्थसिद्धिसदनं प्रथितप्रभावम्।।१।। माध्यं नमामि वृजिनार्णवतारणैक-धीरं शरण्यमुदितानुपम प्रभावम्।सीताऽऽधिसिन्धुपरिशोषणकर्मदक्षंवन्दारुकल्पतरु मव्ययमाञ्जनेयम्।।२।। सायं भजामि शरणोपसृताखिलार्ति-पुञ्जप्रणाशनविधौ प्रथितप्रतापम्।अक्षान्तकं सकलराक्षसवंशधूम-केतुं प्रमोदितविदेहसुतं दयालुम्।।३।। ।। श्रीहनुमते

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हनुमान जी वन्दना

ॐ वन्दे सन्तं श्रीहनुमन्तं रामदासममलं   बलवन्तम्     ।     ।रामकथामृतमधु  निपिबन्तं परमप्रेमभरेण   नटन्तम्    ।।       प्रेमरुद्ध गलमश्रुवहन्तं  पुलकाश्चित वपुषा विलसन्तम्   ।       सर्वं राममयं

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