
राम संग सिय रहति सुखारी।
श्रीरामचरितमानस- अयोध्याकाण्ड चौपाई-राम संग सिय रहति सुखारी।पुर परिजन गृह सुरति बिसारी।। छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी।प्रमुदित मनहुँ चकोर कुमारी।।
श्रीरामचरितमानस- अयोध्याकाण्ड चौपाई-राम संग सिय रहति सुखारी।पुर परिजन गृह सुरति बिसारी।। छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी।प्रमुदित मनहुँ चकोर कुमारी।।
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख
काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सीघाट। उनकी कथा को बहुत
समर्थ गुरू राम दास जी संगत के समक्ष राम कथा कर रहे थे और हनुमान जी वेष बदल कर रोज
जब कोई मुख पूरा खोलकर जम्भाई लेता है और जम्भाई लेते समय भी यदि राम बोलता है तो उसके भीतर
भरत जी जब भरद्वाज मुनि के आश्रम में पधारे तो मुनि जी ने भरत जी और उनके समाज के स्वागत
राम और लक्ष्मण का दर्शन करते ही राजा जनक का मन प्रेम में मग्न हो गया। उन्होंने विवेक का आश्रय
रामनवमी के नौ राम, परमात्मा से राजा, पुत्र से पिता और पति तक भगवान राम के नौ रुप जो सिखाते
रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान 1 बालकाण्ड –बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल
तीन काल त्रिभुवन मत मोरे।पुण्यसि लोक तात तर तोरे।। और भगवान ने कहा कि भरत! तुम्हारी महिमा तो इतनी है