मनुष्यका कर्म ही उसकी मृत्युका कारण
मनुष्यका कर्म ही उसकी मृत्युका कारण पूर्वकालमें गौतमी नामवाली एक बूढ़ी ब्राह्मणी थी, जो शान्तिके साधनमें लगी रहती थी। एक
मनुष्यका कर्म ही उसकी मृत्युका कारण पूर्वकालमें गौतमी नामवाली एक बूढ़ी ब्राह्मणी थी, जो शान्तिके साधनमें लगी रहती थी। एक
उत्तर प्रदेशमें राजघाटके पास किसी गाँवमें एक विद्वान् पण्डितजी रहते थे। घरमें उनकी विदुषी पत्नी थी। पण्डितजी एक बार बीमार
सन् 1897 की बात है, लोकमान्य तिलक दाजी साहेब खरेके बँगलेपर उतरे। रातके 9 ॥ बजे एक यूरोपियन पुलिस सुपरिंटेंडेंट
अपने लिये क्या माँगूँ ? द्वितीय महायुद्धतक यहूदियोंके देशका कहीं कोई 1 अस्तित्व नहीं था, वह सर्वप्रथम सन् 1948 ई0
ग्रीसमें किलेन्थिस नामक एक युवक एथेंसके तत्त्ववेत्ता जीनोकी पाठशालामें पढ़ता था। किलेन्थिस बहुत ही गरीब था। उसके बदनपर पूरा कपड़ा
मध्याह्न वेला भिक्षु भिक्षा कर चुके थे। जेतवनमें विश्राम करते हुए एकने कहा- ‘मगधराज सेनिय विम्बसार राज्य एवं सम्पत्तिकी दृष्टिसे
सिद्दियोंने जंजीरके अभागे दीवान आवजी हरि चित्रेका खून करके उनको पत्नी और दो पुत्रोंको बेच भी दिया। यह तो पत्नीकी
एक सच्चा भक्त था, पर था बहुत ही सीधा उसे छल-कपटका पता नहीं था। वह हृदयसे चाहता था कि मुझे
उस गाँवमें कुळशेखर एक विद्वान् और ईश्वरभक्त व्यक्ति थे। रोज उनके घरके पार्श्ववर्ती मन्दिरमें कथा वाचनका क्रम चलता था। कथा
छलसे किया गया कार्य सफल नहीं होता गरुड़की माता विनताको उनकी सौत कडूने छलसे अपनी दासी बना लिया था। माताको