
विद्यादान न देनेसे ब्रह्मराक्षस हुआ
बात उस समयकी है जब श्रीरामानुजाचार्य अपने प्रथम विद्यागुरु श्रीयादवप्रकाशजीसे अध्ययन करते थे। यादवप्रकाशजी अपने इस अद्भुत प्रतिभाशाली शिष्यसे डाह
बात उस समयकी है जब श्रीरामानुजाचार्य अपने प्रथम विद्यागुरु श्रीयादवप्रकाशजीसे अध्ययन करते थे। यादवप्रकाशजी अपने इस अद्भुत प्रतिभाशाली शिष्यसे डाह
एक दिनकी बात है। योगिराज गम्भीरनाथ अपने कपिलधारा पहाड़ीवाले आश्रममें अत्यन्त शान्त और परम गम्भीर मुद्रामें बैठे हुए थे। वे
सच्चे सन्त बादशाह दाराशिकोहके यहाँ एक सज्जन व्यक्ति मुंशी बनवारीदास लिखा-पढ़ीका काम करते थे। एक बार उनपर आर्थिक संकट आ
गुजरातकी प्रसिद्ध राजमाता मीणलदेवी बड़ी उदार थी। वह सवा करोड़ सोनेकी मोहरें लेकर सोमनाथजीका दर्शन करने गयी। वहाँ जाकर उसने
धनदत्त नामक सेठके घर एक भिखारी आया। सेठ उसे एक मुट्ठी अन्न देने लगे तो उसने अस्वीकार कर दिया। झुंझलाकर
अरुणके पुत्र उद्दालकका एक लड़का श्वेतकेतु था। उससे एक दिन पिताने कहा, ‘श्वेतकेतो! तू गुरुकुलमें जाकर ब्रह्मचर्य का पालन कर;
धर्मराज युधिष्ठिरका राजसूय यज्ञ समाप्त हो गया था। वे भूमण्डलके चक्रवर्ती सम्राट् स्वीकार कर लिये गये थे । यज्ञमें पधारे
एक बार प्रभु श्रीरामचन्द्र पुष्पक यानसे चलकर तपोवनोंका दर्शन करते हुए महर्षि अगस्त्यके यहाँ गये महर्षिने उनका बड़ा स्वागत किया।
श्रीगदाधर भट्ट बड़े ही रसिक तथा भगवद्विश्वासी भक्त थे। ये श्रीचैतन्यमहाप्रभुके समकालीन थे। एक दिन रातको भट्टजीके घरमें एक चोरने
सन्तोंकी अवहेलना और सेवाका फल एक बार नारदजीने धर्मराज युधिष्ठिरसे अपने पूर्वजन्मके बारेमें बताते हुए कहा कि पूर्वजन्ममें इसके पहलेके