हिंसाका कुफल (लेखक – श्रीलीलाधरजी पाण्डेय)
कुछ समय पूर्व बलरामपुरमें झारखंडी नामक शिवमन्दिरके निकट बाबा जानकीदासजी रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन ही उनका आदर्श था।
कुछ समय पूर्व बलरामपुरमें झारखंडी नामक शिवमन्दिरके निकट बाबा जानकीदासजी रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन ही उनका आदर्श था।
श्रीरामका न्याय लंकाके निरंकुश शासक रावणको मारकर उसके धर्मनिष्ठ भाई विभीषणको राजपदपर अभिषिक्त करके महाराज श्रीराम अयोध्या लौट आये और
चन्द्रमाके समान उज्ज्वल, सुपुष्ट, सुन्दर सींगोंवाली नन्दा नामकी गाय एक बार हरी घास चरती हुई वनमें अपने समूहकी दूसरी गायोंसे
जासु सत्यता तें जड़ माया (श्रीशरदचन्द्रजी पेंढारकर) समर्थ गुरु रामदासजीका प्रतिदिन संध्या समय शिष्योंके साथ अध्यात्म चर्चाका नियम था, जिसमें
एक दिनकी बात है। योगिराज गम्भीरनाथ अपने कपिलधारा पहाड़ीवाले आश्रममें अत्यन्त शान्त और परम गम्भीर मुद्रामें बैठे हुए थे। वे
बात उस समयकी है जब श्रीरामानुजाचार्य अपने प्रथम विद्यागुरु श्रीयादवप्रकाशजीसे अध्ययन करते थे। यादवप्रकाशजी अपने इस अद्भुत प्रतिभाशाली शिष्यसे डाह
एक दिनकी बात है। योगिराज गम्भीरनाथ अपने कपिलधारा पहाड़ीवाले आश्रममें अत्यन्त शान्त और परम गम्भीर मुद्रामें बैठे हुए थे। वे
सच्चे सन्त बादशाह दाराशिकोहके यहाँ एक सज्जन व्यक्ति मुंशी बनवारीदास लिखा-पढ़ीका काम करते थे। एक बार उनपर आर्थिक संकट आ
गुजरातकी प्रसिद्ध राजमाता मीणलदेवी बड़ी उदार थी। वह सवा करोड़ सोनेकी मोहरें लेकर सोमनाथजीका दर्शन करने गयी। वहाँ जाकर उसने
धनदत्त नामक सेठके घर एक भिखारी आया। सेठ उसे एक मुट्ठी अन्न देने लगे तो उसने अस्वीकार कर दिया। झुंझलाकर