वह तुम ही हो
अरुणके पुत्र उद्दालकका एक लड़का श्वेतकेतु था। उससे एक दिन पिताने कहा, ‘श्वेतकेतो! तू गुरुकुलमें जाकर ब्रह्मचर्य का पालन कर;
अरुणके पुत्र उद्दालकका एक लड़का श्वेतकेतु था। उससे एक दिन पिताने कहा, ‘श्वेतकेतो! तू गुरुकुलमें जाकर ब्रह्मचर्य का पालन कर;
धर्मराज युधिष्ठिरका राजसूय यज्ञ समाप्त हो गया था। वे भूमण्डलके चक्रवर्ती सम्राट् स्वीकार कर लिये गये थे । यज्ञमें पधारे
एक बार प्रभु श्रीरामचन्द्र पुष्पक यानसे चलकर तपोवनोंका दर्शन करते हुए महर्षि अगस्त्यके यहाँ गये महर्षिने उनका बड़ा स्वागत किया।
श्रीगदाधर भट्ट बड़े ही रसिक तथा भगवद्विश्वासी भक्त थे। ये श्रीचैतन्यमहाप्रभुके समकालीन थे। एक दिन रातको भट्टजीके घरमें एक चोरने
सन्तोंकी अवहेलना और सेवाका फल एक बार नारदजीने धर्मराज युधिष्ठिरसे अपने पूर्वजन्मके बारेमें बताते हुए कहा कि पूर्वजन्ममें इसके पहलेके
एक बार देवता, मनुष्य और असुर-ये तीनों ही ब्रह्माजीके पास ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्याध्ययन करने गये। कुछ काल बीत जानेपर उन्होंने उनसे
श्रीराम शास्त्री अपनी न्यायप्रियताके लिये महाराष्ट्र इतिहासमें अमर हो गये हैं। वे पेशवा माधवरावजी के गुरु थे, मन्त्री थे और
महाराज काशीनरेशकी एक कन्या थी, जो परम विदुषी और धार्मिक भावनासे युक्त होकर दिन-रात धर्मकी चर्चा किया करती थी। उसे
पापका परिणाम – दारुण रोग बात पुरानी है, परंतु है सच्ची। पुराने पंजाबके मुजफ्फरगढ़ जिलेमें जंगलके समीप एक छोटा-सा ग्राम
नीमसे मधु नहीं टपकता सुमन्त्र महाराज दशरथके प्रधान सचिव, सखा और सारथि थे। श्रीरामके प्रति इनका सहज स्नेह और वात्सल्य