
सहकारका चमत्कार
सहकारका चमत्कार एक-दूसरेकी आपसी मददसे किस प्रकार कार्य सफल हो सकते हैं, इसका बड़ी खूबीके साथ चित्रण करनेवाली उपनिषद्की एक

सहकारका चमत्कार एक-दूसरेकी आपसी मददसे किस प्रकार कार्य सफल हो सकते हैं, इसका बड़ी खूबीके साथ चित्रण करनेवाली उपनिषद्की एक

सत्तूका चमत्कार कहा जाता है, पलामूके शासक भगवन्तराय काफी कुशाग्रबुद्धि तथा विनोदी स्वभावके थे। बात है, सन् 1618ई0 के आस-पासकी।

विदर्भदेशमें सत्य नामका एक दरिद्र ब्राह्मण था । उसका विश्वास था कि देवताके लिये पशु बलि देनी ही चाहिये। परंतु

संत हुसेनके साथी तपस्वी मलिक दिनार थे। वे अत्यन्त सरल एवं पवित्र हृदयके महात्मा थे। एक दिन एक स्त्रीने उनको

कर्मोंका प्रतिफल एक समय नारदजी विष्णुलोक की यात्रापर जा रहे थे, मार्गमें नारदजीको दो सरोवर मिले, जिनका जल अत्यन्त स्वच्छ,

मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था । सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक सत्पुरुष शिष्यके साथ जा रहे

दम्भ पतनका कारण रावणने ऐसी तपस्या की थी, जो सभीके लिये दुःसह थी। महादेवजीको तपस्या बहुत प्रिय है। वे उसकी

[4] करनीका फल एक कुत्ते और एक मुर्गे के बीच बड़ा प्रेम था। एक दिन दोनों साथ मिलकर घूमनेको गये।

वेशका सम्मान एक बहुरूपियेने राजा भोजके दरबारमें आकर राजासे पाँच रुपयेके दानकी याचना की। राजाने कहा कि ‘वे कलाकारको पुरस्कार

राष्ट्रिय स्वयंसेवक सङ्घके मूल संस्थापक स्वनामधन्य डॉक्टर श्रीकेशवराव बलिराम हेडगेवार किसी कारणवश एक बार शनिवारके दिन कुछ साथियोंको लेकर अड़े