
पतिसेवासे पति वशमें
वेरूलके निकट देवगाँवके आऊदेवकी कन्या बहिणाबाई और उसके पति गङ्गाधरराव पाठक पट्टीदारी के झगड़ेसे ऊबकर घर त्याग कोल्हापुरमें आकर बस
वेरूलके निकट देवगाँवके आऊदेवकी कन्या बहिणाबाई और उसके पति गङ्गाधरराव पाठक पट्टीदारी के झगड़ेसे ऊबकर घर त्याग कोल्हापुरमें आकर बस
चन्दनका कोयला बनाते हम एक राजा वन-भ्रमणको गया। रास्ता भटककर, भूख-प्याससे व्याकुल हुआ वह एक लकड़हारे के झोंपड़ेपर पहुँचा। लकड़हारेने
श्रीचैतन्य महाप्रभु संन्यास लेकर जब श्रीजगन्नाथपुरीमें रहने लगे थे, तब वहाँ महाप्रभुके अनेक भक्त भी बंगालसे आकर रहते थे। महाप्रभुके
एक सदाचारिणी ब्राह्मणी थी, उसका नाम था जबाला उसका एक पुत्र था सत्यकाम। वह जब विद्याध्ययन करने योग्य हुआ, तब
भगवान् व्यास सभी जीवोंकी गति तथा भाषाको समझते हैं। एक बार जब वे कहीं जा रहे थे, तब रास्तेमें उन्होंने
एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि
एक भक्तिमती वृद्धा श्रीराधाके बालरूपका ध्यान कर रही थी। ध्यानमें श्रीराधाने काजल न लगवानेका हट पकड़ लिया। वह भाँति-भाँति उसको
एक भजनानन्दी साधु घूमते हुए आये और एक मन्दिरमें ठहर गये। मन्दिरके पुजारीने उनसे कहा *आप यहाँ जितने भी दिन
एक महात्मा थे। वे एकान्तमें देवीजीकी पूजा करते थे। एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे उनके मनमें आया
एक जिज्ञासुने किसी संतसे पूछा- ‘महाराज ! राम नाममें कैसे प्रेम हो तथा कैसे भजन बने ?’ संत बोले- भाई!