वात्सल्यवती वृद्धा
एक भक्तिमती वृद्धा श्रीराधाके बालरूपका ध्यान कर रही थी। ध्यानमें श्रीराधाने काजल न लगवानेका हट पकड़ लिया। वह भाँति-भाँति उसको
एक भक्तिमती वृद्धा श्रीराधाके बालरूपका ध्यान कर रही थी। ध्यानमें श्रीराधाने काजल न लगवानेका हट पकड़ लिया। वह भाँति-भाँति उसको
एक भजनानन्दी साधु घूमते हुए आये और एक मन्दिरमें ठहर गये। मन्दिरके पुजारीने उनसे कहा *आप यहाँ जितने भी दिन
एक महात्मा थे। वे एकान्तमें देवीजीकी पूजा करते थे। एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे उनके मनमें आया
एक जिज्ञासुने किसी संतसे पूछा- ‘महाराज ! राम नाममें कैसे प्रेम हो तथा कैसे भजन बने ?’ संत बोले- भाई!
संकटका साथी एक शिकारी था। एक दिन सुबहसे उसे कोई शिकार नहीं मिला। इससे वह उद्विग्न हो उठा। उसके पास
असली पुजारी कौन ? एक विशाल मन्दिर था। उसके प्रधान पुजारीकी मृत्युके बाद मन्दिरके प्रबन्धकने नये पुजारीकी नियुक्तिके लिये घोषणा
‘देश, धर्म और स्वराज्यकी बलिवेदीपर प्रत्येक | भारतीयको चढ़ जाना चाहिये; यह पवित्र कार्य है। इसीमें आत्मसम्मानका संरक्षण है।’ महाराज
खाना ही नहीं, पचाना भी चाहिये हनुमानसिंह दक्षिणेश्वर मन्दिरमें रक्षकके कार्यपर नियुक्त थे। दरबान होनेपर भी हनुमानसिंहकी बड़ी प्रसिद्धि थी;
अछूत कौन ? एक बार प्रेम-भूमि श्रीवृन्दावनमें यमुनाजीके पवित्र तटपर कुछ साधु बैठे हुए थे। उनकी धूनी जल रही थी
लोमड़ीका बच्चा और मीठे बेर एक दिन एक लोमड़ीका बच्चा जब खानेकी खोज में निकला तो उसकी माँने उसे समझाया-‘बेटा