प्रेरणाप्रद लघु बोधकथाएँ
प्रेरणाप्रद लघु बोधकथाएँ तुम बहुत सुखी हो एक समयकी बात है, एक कौवेकी भेंट एक हंससे हुई। उस कौवेने हंसके
प्रेरणाप्रद लघु बोधकथाएँ तुम बहुत सुखी हो एक समयकी बात है, एक कौवेकी भेंट एक हंससे हुई। उस कौवेने हंसके
स्वर्गके देवदूतोंने भगवान् एक दिन प्रश्न किया “प्रभो क्या संसारमें ऐसी भी कोई वस्तु है जो चट्टानोंसे अधिक कठोर हो
आपसकी कलहसे तीसरेका लाभ होता है सिंहनगरके राजकुमारका नाम चन्दन था। उसके पेटके अन्दर एक सौंप रहता था। राजकुमार जो
मूल्यहीन सौन्दर्य एक सम्भ्रान्त प्रतीत होनेवाली अतीव सुन्दरीने विमानमें प्रवेश किया और अपनी सीटकी तलाश में नजरें घुमायें। उसने देखा
वृत्रासुरने देवराज इन्द्रके साथ महायुद्ध करते हुए उनसे कहा- ‘देवराज! भगवान् विष्णुने मुझे मारनेके लिये तुम्हें आज्ञा दी है, इसलिये
एक बार इन्द्रने बड़ी कठिनतासे राजा यतिको ह निकाला। उस समय वे छिपकर किसी खाली घरमें गदहेके रूपमें कालक्षेप कर
विक्रमीय दसवीं शताब्दीकी बात है । — एक दिन काश्मीर-नरेश महाराज यशस्करदेव अपनी राजसभा बैठकर किसी गम्भीर विषयका चिन्तन कर
मैं अपने सारे सम्बन्ध, यौवन और धन आदिका त्यागकर संन्यास लूँगा। प्रवजित होना ही मेरे जीवनका लक्ष्य है।’ मगधदेशीय महातिथ्य
‘ऊधो! करमन की गति न्यारी’ (स्वामी श्रीशिवानन्दजी वैद्यराज) एक बहुत बड़ा सेठ विपुल सम्पत्ति छोड़कर मरा था। उसका एकमात्र पुत्र
परम्परा एवं रूढ़ि परम्पराओंके जन्म और दीर्घजीवी होनेके विषय में सचेत करती हुई एक झेन कथा कहती है कि एक